SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९६ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ३ / जुलाई-सितम्बर - २०११ हैं। प्रो० सिंह ने कहा कि यदि भविष्य में पार्श्वनाथ विद्यापाठ, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के साथ मिलकर इस प्रकार के अध्ययन कार्यक्रम की योजना बनाता है तो काशी हिन्द विश्वविद्यालय उसका स्वागत करेगा। आई. एस. जे. एस. का पूर्व और पश्चिम को जैनविद्या के माध्यम से जोड़ने का प्रयास सराहनीय है। सारस्वत अतिथि प्रो० कमलशील ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ आई. एस. जे. एस. के द्वारा विदेशी विद्वानों को जैनविद्या की शिक्षा देने के प्रयास को एक अभिनव प्रयास बताया और आयोजकों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। कार्यक्रम का संचालन डॉ० अशोक कुमार सिंह ने तथा धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के संयुक्त निदेशक डॉ० श्री प्रकाश पाण्डेय ने किया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में लघु शोध-प्रबन्ध लेखन, शोधपत्रों की प्रस्तुति एवं परिचर्चा हुई। २. प्राकृत एवं अपभ्रंश के प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम का अध्यापन कार्य सम्पन्न राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त तथा अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर द्वारा पत्राचार के माध्यम से संचालित प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं के प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम का अध्यापन दिनाङ्क २५ जुलाई २०११ से ३१ जुलाई २०११ तक विद्यापीठ के प्राङ्गण में सम्पन्न हुआ। डॉ० मञ्जू जैन तथा श्रीमती अमिता जैन, जयपुर से आकर विद्यार्थियों को विषय के अध्ययन के साथ-साथ परीक्षा सम्बन्धी सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करायी। उन्होंने बतलाया कि यदि जैन वाङ्मय का सम्पूर्ण एवं विस्तृत अध्ययन करना है तो प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं की जानकारी आवश्यक है क्योंकि जैनधर्म-दर्शन के मूल ग्रन्थ प्राकृत एवं अपभंश में ही उपलब्ध हैं। ३. जैन भूगोल : एक नवीन अवधारणा' विषय पर विशिष्ट व्याख्यान डॉ. विमल चन्द्र जैन, सेवानिवृत्त प्राचार्य, शासकीय महाविद्यालय, बारा, राजस्थान, ने पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सभागार में १५ सितम्बर २०११ दिन गुरुवार को 'जैन भूगोल : एक नवीन अवधारणा' विषय पर व्याख्यान दिया। इसमें उन्होंने बतलाया कि जैन भूगोल प्रकृति के साथ सकारात्मक सम्बन्ध बनाने का पक्षधर है। मनुष्य की मनोवृत्तियों को ध्यान में रखकर भौगोलिक वातावरण को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है? और उसे कैसे जीवनोपयोगी बनाया जा सकता है इस सन्दर्भ में जैनधर्म-दर्शन के सिद्धान्तों की उपयोगिता को रूपायित किया।
SR No.525077
Book TitleSramana 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy