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________________ डॉ० हमलता विपाकसूत्र में वर्णित चिकित्सा विज्ञान डॉ० हेमलता बोलिया विदुषी लेखिका ने विपाकसूत्र को माध्यम बनाकर जो आयुर्वेद सम्बन्धी चिकित्सा पद्धति को अध्यात्म के साथ जोड़ा है वह सराहनीय है। रोगों के प्रकार, उनके उपचार की विधि आदि विषयों को इसमें समाहित किया गया है। ये रोग क्यों होते हैं, इनके कारणों पर भी जैनकमसिद्धान्त के आधार पर दृष्टान्तपूर्वक समाधान किया गया है। -सम्पादक वर्तमान में विश्व मानचित्र पर जो दृश्य अंकित है उससे तो हम सब भली-भाँति परिचित हैं। आज वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण भौतिक समृद्धि तो बढ़ी, किन्तु जीवन में विलासिता छा गई और दृष्टि भौतिकवादी हो गई है। आध्यात्मिकता, श्रद्धा और विश्वास तो मानो बीते दिनों की बात हो। विज्ञान के बढ़ते वर्चस्व के कारण आज प्रत्येक विचार/वस्तु को तर्क की कसौटी पर कसा जाने लगा है। परन्तु हमें यह सदैव याद रखना चाहिये कि शास्त्र कभी पुरातन नहीं होते हैं। उनमें निहित ज्ञान शाश्वत और सार्वकालिक होता है। व्यक्ति चाहे जिस निकष पर उसे कसे वह खरा और नित-नूतन ही प्रतीत होता है। उसकी उपादेयता और महत्ता में उत्तरोत्तर अभिवृद्धि होती रहती है। जैनमतावलम्बियों का ‘विपाकसूत्र' एक ऐसा आगम ग्रन्थ है जो धार्मिक- दार्शनिक होने के साथ ही वैज्ञानिक भी है। इसमें वर्णित विविध कथाओं के माध्यम से विज्ञान की अनेक विधाओं का सम्यक् निरूपण किया गया है। इसका मुख्य प्रतिपाद्य विषय शुभाशुभ कर्मों के विपाकों (फलों) का निरूपण है, जो कर्म-विज्ञान का ही विषय है। इस आगम में कर्म-विज्ञान के साथ-साथ वैद्यकशास्त्र/चिकित्साविज्ञान, मत्स्यबन्धविज्ञान आदि का भी सुन्दर निरूपण देखने को मिलता है। शुभाशुभ कर्मों का सीधा सम्बन्ध हमारे स्वास्थ्य से कैसे है? यह विपाकसूत्रम् में वर्णित कथाओं से ज्ञात होता है। प्रस्तुत शोधालेख का विवेच्य विषय वैद्यकशास्त्र है। वैद्यकशास्त्र के अपरनाम आयुर्वेद, स्वास्थ्य विज्ञान, शरीरविज्ञान, चिकित्साशास्त्र या चिकित्साविज्ञानादि हैं। 'विपाकसूत्र' के दुःखविपाक श्रुतस्कन्ध और सुखविपाक श्रुतस्कन्ध के १०-१० अध्ययनों में क्रमश: शरीर-संस्थान प्राप्ति के कारण और प्रकार, रोग के कारण एवं प्रकार, आयुर्वेद के अष्टांग प्रकारों, वैद्यक/चिकित्सक के प्रकार, रोगोपचार विधि आदि का सांगोपांग विवेचन हैशरीरसंस्थान- शरीर की रचना-विशेष को संस्थान कहते हैं। जैनागम में ये छह
SR No.525076
Book TitleSramana 2011 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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