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________________ जैन दर्शनानुसार वर्तमान में धर्मध्यान सिद्धि के प्रमाण : ३३ पग पर ऐसी अनेक चर्चायें मिलती हैं जिनसे वर्तमान में भी धर्म साधना की सार्थकतायें बतलाई गई हैं। मैं तो यह कहना चाहता हूँ कि मोक्ष कब और कब नहीं हमें इन प्रश्नों में उलझना ही नहीं चाहिए। वर्तमान में भी यदि संसार में रहते हुए सुखशान्ति की यत्किञ्चित् उपलब्धि हमें हो सकती है तो उसका उपाय भी यही शुद्ध सात्विक आध्यात्मिक जैन जीवन शैली है। वीतरागता का अवलम्बन लेकर श्रावकाचार और मूलाचार का निरतिचार पालन, श्रुताभ्यास, ध्यान-योग साधना मनुष्य को मनुष्य के रूप में पूर्ण होने और उत्कृष्टतम जीवन जीने का एक सार्थक उपाय है। जो ये कर पा रहे हैं वे द्रव्य न सही पर भाव मोक्ष में तो विराज ही रहे हैं, ऐसा मेरा मानना है। सन्दर्भ सूची १. तत्त्वार्थसूत्र, ९/२७ २. सर्वार्थसिद्धि, ९/२०/४३९/८ ३. तत्र पुण्याशयः पूर्वस्तविपक्षोऽशुभाशयः। शुद्धोपयोग संज्ञो यः स तृतीयः प्रकीर्तितः।। -ज्ञानार्णव, ३/२८ ४. ऋतं दुःखम्, अर्दनमर्तिर्वा, तत्र भवमार्तम् -सर्वार्थसिद्धि, ९/२८/८७४ ५. रुद्रः क्रूराशयस्तस्य कर्म तत्र भवं वा रौद्रम् -वही। ६. धर्मादनपेतम् धर्म्यम् -वही। ७. शुचिगुणयोगाच्छुक्लम् -वही ८. भगवती आराधना, १७०९ ९. पावारंभणिवित्ती पुण्णारंभपउत्तिकरणं पि। णाण धम्मज्झाणं जिणभणियं सव्वजीवाणं।। -रयणसार ७९ १०. ज्ञानार्णव, ३/२९ ११. द्रव्यसंग्रह टीका, ४८/२०५/३ १२. तत्त्वदेशना, पृ० ३२ १३. धवला, १३/५, ४, २६ / गा० ५४-५५ १४. तत्त्वदेशना, पृ० ३२ १५. तत्त्वार्थसूत्र, ९/३६ १६. राजवार्तिक, १/७/१४/४०/१६ १७. चारित्रसार, १७२/४ १८. तत्त्वदेशना, पृ० ३०
SR No.525076
Book TitleSramana 2011 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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