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________________ जैन दर्शनानुसार वर्तमान में धर्मध्यान सिद्धि के प्रमाण डॉ० अनेकान्त कुमार जैन जैन दर्शन में ध्यान के चार भेद बतलाये गये हैं- आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल। इनमें से लेखक ने इस आलेख में धर्मध्यान को विस्तार से विवेचित किया है। धर्मध्यान के चारों प्रकारों का विवेचन करते हुए बतलाया है कि पञ्चम काल के अन्त तक धर्मध्यान रहेगा। धर्मध्यान किस गुणस्थान तक रहता है और किनको धर्मध्यान होता है इस विषय को भी सिद्ध किया है। -सम्पादक पञ्चम काल में भारत क्षेत्र से कोई भी जीव मोक्ष नहीं जाएगा- इस प्रकार के ब्रह्म वाक्य का उद्घोष होते ही सामान्य जनों में यह आशंका उत्पन्न होने लगती है कि सब कुछ तो मोक्ष के लक्ष्य से ही किया जाता है, यदि वर्तमान में जब कालदोष के कारण वह मार्ग अवरुद्ध ही है तब धर्मादि करने से क्या लाभ? हम क्यों करें मुक्ति की निरर्थक अभिलाषा? वर्तमान में चल रहे तप, ध्यान, पूजा-पाठ तथा अन्य क्रियाएँ क्या ये सब लक्ष्यहीन हैं? क्यों दीक्षा ग्रहण करें? क्यों बनें मुनिआर्यिका? व्रतधारण करने से क्या लाभ? इत्यादि प्रश्न मन में उठते हैं। यहाँ यह बात सही है कि पञ्चम काल में साक्षात् मुक्ति सम्भव नहीं है किन्तु धर्म नहीं हो सकता ऐसी बात नहीं है। पञ्चम काल लगभग २१००० वर्षों का है और अभी लगभग ढाई हजार साल ही बीते हैं। मुक्ति के निषेध के उक्त तथ्य के साथ-साथ यह भी उद्घोष है कि पञ्चम काल के अन्त तक वीतरागी दिगम्बर संतों का सद्भाव बना रहेगा। धर्म तथा धर्मध्यान की विशुद्ध प्रक्रियाओं के द्वारा साधक कल्याण पथ पर अग्रसर रहेंगे। आचार्य देवसेन के 'तत्त्वसार' तथा उसपर आचार्य विशुद्ध सागर मुनिराज की व्याख्या 'तत्त्वदेशना' में चौदहवीं, पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं गाथा में इस विषय पर विशेष रूप से चिन्तन किया गया है। अन्य ग्रन्थों जैसे द्रव्यसंग्रह टीका, नयचक्र (बृहद्), मोक्षपाहुड, ज्ञानार्णव, तत्त्वानुशासन आदि ग्रन्थों में भी इस विषय पर विचार विमर्श किया गया है। जैनदर्शन में ध्यान का स्वरूप जैनदर्शन में 'एकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानम्'' तथा 'चित्तविक्षेपत्यागो ध्यानम्' इत्यादि लक्षण कहकर यह कहा गया है कि “एकाग्रता का नाम ध्यान है'। वह एकाग्रता कई तरह की हो सकती है। शुभ रूप भी हो सकती है, अशुभ रूप भी हो सकती
SR No.525076
Book TitleSramana 2011 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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