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सभी विरोधों का समाधान है: अनेकान्तवाद एवं स्याद्वाद : ९
१. नैगम नय की दृष्टि से न्याय-वैशेषिक दर्शन का। २. संग्रह नय की दृष्टि से सांख्य व वेदान्त दर्शन का । ३. व्यवहार नय की दृष्टि से मीमांसा दर्शन का। ४. ऋजुसूत्र नय की दृष्टि से बौद्धदर्शन का। ५. शब्द नय की दृष्टि से शब्दाद्वैत दर्शन का। ६. समभिरूढ नय की दृष्टि से चार्वाक दर्शन का। ७. भूतप्रज्ञापन नय की दृष्टि से योग दर्शन का। उपसंहार ऊपर दार्शनिक दृष्टि से जिस तरह अनेकान्तवाद और स्याद्वाद द्वारा विभिन्न विरोधों के समाधान का सुगम मार्ग बतलाया गया है उसी तरह अन्य क्षेत्रों में भी इसे घटित कर लेना चाहिए। पिता को पुत्र के दृष्टिकोण को तथा समय की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर विचार करना चाहिए। इसी तरह पुत्र को भी पिता की परिस्थितियों को समझना चाहिए। ऐसा करने पर विवाद समाप्त होंगे और जीवन में अमृतरस की वर्षा होगी। इसी तरह पति-पत्नी, मित्र-शत्रु, आदि सभी क्षेत्रों में इस सिद्धान्त की उपयोगिता है। यह एक ऐसी कुञ्जी है जिससे सभी बन्द ताले खुल सकते हैं, आवश्यकता है उसके सही प्रयोग की। सन्दर्भ सूची १. निरपेक्षा नय मिथ्या, सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृत्।- समन्तभद्र,
आप्तमीमांसा, १०८ २. (क) अनेकान्तात्मकार्थकथनं स्याद्वाद:- लघीयस्त्रयविवृत्ति,
(ख) सम्पूर्णार्थविनिश्चायी स्याद्वादश्रुतमुच्यते।- सिद्धसेनकृत न्यायावतार, ३० (ग) स्याद्वादः सर्वथैकान्तत्यागात् किंवृत्तचिद्विधिः। सप्त-भङ्गनयापेक्षो हेयादेयविशेषकः।।,
समन्तभद्र, आप्तमीमांसा, १०४ (घ) अपितानार्पितसिद्धेः।- तत्त्वार्थसूत्र, ५.३२ ३. देखें, अध्यात्म से समृद्धि, स्वास्थ्य एवं शान्ति
___भाग-१, अनेकान्त समझ, डॉ० पारसमल अग्रवाल ४. देखें, फुटनोट नं० २। र ५. (क) घटमौलिसुवर्णार्थी नाशोत्पादस्थितिस्वयम् ।
शोकप्रमोदमाध्यस्थ्यं जनो याति सहेतुकम् ॥ पयोव्रतो न दध्यत्ति न पयोत्ति दधिव्रतः। अगोरसवतो नोभे तस्मात्तत्त्वं त्रयात्मकम् ।।, आप्तमीमांसा, ५९-६०