SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्पादकीय सर्वप्रथम मैं अपने सुविज्ञ पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूँ कि जनवरी-मार्च २०११ का अंक समय पर प्रकाशित नहीं कर सके। इसका प्रमुख कारण है विदेशी अजैन विद्वानों द्वारा लिखित लेखों का सम्पादन करना। हमारे बोर्ड ने निर्णय लिया है कि इस अंक में ISJS के अन्तर्गत जून-जुलाई २०१० में समागत विदेशी विद्वानों की दृष्टि में जैन धर्म-दर्शन की अवधारणाओं को आप तक पहुँचाया जाए और श्रमण का यह अंक एक विशेषांक का रूप ले। इस दिशा में डॉ० शुगन चन्द जैन जो श्रमण के शैक्षणिक बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं, के अथक परिश्रम एवं सम्पादन का ही परिणाम है कि हम इसे कई मास की मेहनत के बाद सम्पादित कर सके। विशेषांक का उद्देश्य है विदेशी विद्वानों की भावनाओं का समादर करना तथा जैन विद्या के अध्ययन हेतु उन्हें प्रोत्साहित करना। इस अंक में ग्यारह लेख हैं जिनमें से सात लेख पूर्ण हैं तथा शेष चार का मात्र सारांश दिया गया है। इस अंक में हम अंग्रेजी लेखों का संस्कारित अति संक्षिप्त विवरण भी यहीं सम्पादकीय के बाद हिन्दी भाषाभाषियों के लिए दे रहे हैं। इस योजना को आगे भी हम मूर्तरूप देने का प्रयास करेंगे ताकि हिन्दी और अंग्रेजी दोनों प्रकार के पाठकों को लाभ मिल सके। श्रमण के इस अंक के विषय में डॉ० शुगन चन्द जैन ने अपने पुरोवाक (Prologue) में निम्न विचार प्रकट किये हैंपार्श्वनाथ विद्यापीठ और श्रमण ने विगत छः महीनों में जैन दर्शन और सामाजिक जीवन से सम्बद्ध अकादमिक गतिविधियों की गुणवत्ता और उसे गति प्रदान करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं। श्रमण का यह अंक ISIS २०१० में सहभागी विदेशी विद्वानों के शोधपरक पत्रों की प्रस्तुति है। प्रस्तुत आलेखों में से कुछ आलेख विद्वानों के लघु शोध-प्रबन्ध हैं और कुछ विद्वानों की विषय विशेषज्ञता से सम्बन्धित हैं। जैन धर्मदर्शन के उभरते हुए विदेशी विद्वानों के प्रोत्साहन हेतु श्रमण का यह अंक प्रस्तुत है। आशा है विद्यापीठ का यह कदम जैन धर्मदर्शन के विकास मार्ग में मील का पत्थर साबित होगा। लेखकों से निवेदन हम विषय-विशेषज्ञों की संस्तुति (Review) के बाद ही आलेख छापना चाहते हैं। अतः लेखकों से निवेदन है कि लेख मौलिक, अप्रकाशित तथा शोधसन्दर्भो से सुसज्जित हो। किस संस्करण से सन्दर्भ लिए गए हैं? इसका उल्लेख अवश्य हो। हम देखते हैं कि कुछ लेखों के मूल सन्दर्भो को मिलाने में तथा उन्हें भाषा की दृष्टि से शुद्ध करने में बड़ी परेशानी होती है। लेख भेजते समय निम्न जानकारी अवश्य उपलब्ध कराएँ- लेखक का नाम, पद, पता, मोबाइल या फोन नं०, ईमेल पता,
SR No.525075
Book TitleSramana 2011 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2011
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy