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________________ ७८ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर - १० सं. १. २. ३. ४. समाधान नमोकार मंत्र नमो (णमो) अरिहन्ताणं नमो (णमो) सिद्धाणं ७ णमो (णमो) आइरियाणं नमो (णमो) उवज्झायाणं ७ १५ नमो (णमो लोए सत्वसाहूणं ९ योग ३५ ५८ अक्षर ७ मात्रा ११ ९ ११ १२ स्वर 3 व्यञ्जन เ ত 5 ७ ९ ८ ३४ ३० इसका अर्थ है- सभी अर्हन्तों को नमस्कार है। सभी सिद्धों को नमस्कार है। सभी आचार्यों को नमस्कार है। सभी उपाध्यायों को नमस्कार है और लोक के सभी सच्चे साधुओं को नमस्कार है। इस मंत्र में 'लोए' और 'सव्व' ‘अन्त्यदीपक' हैं जिसका अर्थ है इन्हें सभी मन्त्र वाक्यों के साथ जुड़ा हुआ समझना चाहिए। प्राकृत भाषा में रचित यह पंच परमेष्ठी वाचक मंत्रराज है। इसका संस्कृत रूप है नमस्कार मंत्र। यह सभी पापों को नष्ट करने वाला और सभी मंगलों में प्रथम (श्रेष्ठ) मंगल है। कहा है णमोयारो एसो पंच सव्व- पावप्पणासणो । मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं होई मंगलं ।। इस मन्त्र के कई रूप मिलते है, जैसे (१) अरिहंत - मोह रूप कर्म - शत्रुओं को नष्ट करने वाला या उन्हें आत्मा से अलग करने वाला । यहाँ हिंसा का भाव नहीं है। (२) अरहन्त ( अर्हन्त ) - यह पूज्यार्थक 'अर्ह' धातु से बना है। अतः इसका अर्थ है 'पूज्य'। (३) 'अरूहंताणं' इसका अर्थ है संसार रूपी वृक्ष के बीज को दग्ध करने वाला। 'अरुह' अर्थात् जो बीज पुनः अंकुरित न हो । है। (४) 'नमो' के स्थान पर दिगम्बर परम्परा में 'णमो' का प्रयोग मिलता प्राकृत के नियमानुसार 'न' को 'ण' होता है परन्तु हेमचन्द्राचार्य ने पद के आदि के 'नं' के प्रयोग को उचित बतलाया है। (५) 'आयरियाणं या आइरीयाणं' दोनों प्रयोग मिलते हैं। प्राकृत नियमानुसार आयरियाणं में 'य' श्रुति हुई है। (६) 'सव्व' के स्थान पर 'सब्ब' भी प्रयुक्त होता है।
SR No.525074
Book TitleSramana 2010 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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