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पुण्यकुशलगणि विरचित भरतबाहुबलिमहाकाव्य में जैनधर्म एवं दर्शन : ४९ ५. ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न कश्चित् शृणोति मे।
धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थं न सेव्यते।। - महाभारत, स्वर्गारोहणपर्व, ५/६२ ६. भरतबाहुबलि महाकाव्य १०/२२ ७. भ.बा.म. - ३/७ ८. भ.बा.म. - २/६८ ९. भ. बा. म. १०/५० १०. भ. बा. म. १०/४७ ११.. भ. बा. म. १७/७६ १२. भ. बा. म. १७/७९ १३. भ. बा. म. १७/६१ १४. भ. बा. म. १७/७० १५. भ. बा. म. १७/७६ १६. वही १०/२९ १७. वही १०/४२ १८. वही १०/४७ १९. वही १०/५० २०. वही, १०/५१ २१. वही १०/५२ २२. वही १०/६३ २३. वही १०/२० २४. वही १०/२२ २५. वही १७/७९ २६. भ. बा. म. १०/२०