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________________ १६ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४/ अक्टूबर-दिसम्बर-१० कल्याणकारी उदाहरण बना रखा हैकचकुचचिबुकाग्रे पाणिषु व्यापृतेषु प्रथमजलधिपुत्रीसङ्गमेऽनङ्गधाग्नि । निबिडनिबिडनीवीग्रन्थिविश्लेषणोच्छोश्चतुरधिककराशा शाङ्गिणो वः पुनातु ।।१५ इसी प्रकार ससन्देहालङ्कार का विशद निरूपण कर उसके कतिपय स्थलों को हेमचन्द्राचार्य रसाभास या भावाभास कहते हैं। हेमचन्द्राचार्य ने सूक्ष्म तथा अर्थापत्ति का अन्तर्भाव अनुमान में दिखलाया है।१६ सारालङ्कार को परिसंख्या में गतार्थ बतलाते हुए हेमचन्द्राचार्य ने टिप्पणी दीराज्ये सारं वसुधेत्यादौ सारालङ्कारः कैश्चिदुक्तः, स चान्यापोहमन्तरेण न चमत्करोतीति परिसंख्यैवालङ्कार। हेमचन्द्राचार्य ने हेत्वलङ्कार पर विस्तृत और गम्भीर विवेचन करने के बाद लिखा कि काव्यप्रकाश का इस अलङ्कार को अमान्य ठहराना ठीक है यदि इसके स्थलों में चमत्कार न हो। इसका अर्थ यह कहना है कि हेत्वलङ्कार स्थल में चमत्कार का अनुभव हो रहा हो तो उसे अलङ्कार स्वीकार किया जा सकता है। तब मम्मट द्वारा उसे काव्यलिङ्ग अलङ्कार में अन्तर्भूत मानना उचित न होगा।१८ यह कदम कोई स्वस्थ विचारक ही ले सकता है। विनोक्ति में हेमचन्द्राचार्य ने कोई चमत्कार नहीं देखा और सहोक्ति को उपमा में अन्तर्भूत माना।१९ पण्डितराज जगन्नाथ ने विनोक्ति में ध्वनित्व भी माना और 'विशालाभ्यामाभ्यां' उदाहरण प्रस्तुत किया। हेमचन्द्राचार्य ने भाविकालङ्कार के सन्दर्भ में मम्मट से आगे बढ़ते हुए अभिनेय वस्तु और या नाट्य के प्रवेशक, विष्कम्भक आदि को भी स्मरण किया है। यह एक अत्यन्त विचारणीय विषय है।२० उदात्तालंकार में मम्मट ने भोजराज की दानकीर्ति से संबन्धित जो 'मुक्ताः केलिविसूत्रहारगलिता:' उद्धृत किया है उसमें हेमचन्द्राचार्य ने अतिशयोक्ति को मान्यता दी है।२१ "तदिदमरण्यं' इस द्वितीय उदाहरण में भी हेमचन्द्राचार्य ने रामचरित की ध्वनि या उसी के गुणीभूतव्यङ्ग्य को मानने का तर्क प्रस्तुत किया है।२२ इसी प्रकार 'आसीदञ्जनमत्रेति' पद्य में भावध्वनि का चमत्कार माना है, भाविक का नहीं।२३ प्रत्यनीकालंकार में चमत्कार का कारण हेमचन्द्राचार्य ने उत्प्रेक्षा को माना है।२४ समाधान हेमचन्द्राचार्य ने साहित्यशास्त्र में अनेक समाधान भी प्रस्तुत किए हैं। उदाहरणार्थ लता और वृक्ष के व्यवहार से यदि स्त्री-पुरुष के व्यवहार का
SR No.525074
Book TitleSramana 2010 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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