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लेख शोध-प्रबन्धसार गुजराती साहित्यमां जैन भक्तिकाव्यो
लेखक श्रीमती किरण श्रीवास्तव पन्नालाल रसिकलाल शाह दर्शन, तत्त्व मीमांसा
विषय आगम और साहित्य आगम एवं साहित्य ५२ एवं ज्ञान मीमांसा
वर्ष ५२ ५२ ४-९
अंक ई.सन् पृष्ठ ४-९ २००१ १४८-१५१ ४-९ २००१ १५२-१६३ २००१ १६४-१६९
School of Jaina Philosophy Rightful exposition of Jainism in the west Samyakdarśana
Dr. N.L. Jain J.P. Jain 'Sadhak'
५२ ५२
४-९ ४-९
२००१ १७०-१७९ २००१ १८०-१८४
दर्शन, तत्त्व मीमांसा एवं ज्ञान मीमांसा आगम एवं साहित्य आगम और साहित्य
१०४ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर-१०
५२ १०-१२ २००१ ५२ १०-१२ २००१
१-९ १०-३६
विविध
५२ १०-१२ २००१
३७-४७
आगम एवं साहित्य
५२ १०-१२ २००१
अर्धमागधी आगम साहित्य : कुछ सत्य कुछ तथ्य डॉ. सागरमल जैन जैन आगमों की मूल-भाषा : अर्धमागधी या डॉ. सागरमल जैन शौरसेनी प्राकृत विद्या में प्रो. टाँटिया जी के नाम से डॉ. सागरमल जैन प्रकाशित उनके व्याख्यान के विचार-बिन्दुओं की समीक्षा शौरसेनी प्राकृत के सम्बन्ध में प्रो. भोलाशंकर डॉ. सागरमल जैन व्यास की स्थापनाओं की समीक्षा अशोक के अभिलेखों की भाषा : मागधी या डॉ. सागरमल जैन शौरसेनी क्या ब्राह्मी लिपि में 'न' और 'ण' के लिये एक डॉ. सागरमल जैन ही आकृति थी? ओङ्मागधी प्राकृत : एक नया शगूफा
डॉ. सागरमल जैन
४८-५६
आगम और साहित्य
५२ १०-१२ २००१
५७-६५
आगम एवं साहित्य
५२
१०-१२ २००१
६६-७४
Pin या
आगम और साहित्य
५२
१०-१२ २००१
७५-८३