SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचीन भारत में भूमिदान की परम्परा : ६९ एवं विस्तार की भूमि हैं। साहित्यिक तथा पुरातात्त्विक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि पूर्वमध्य काल तक जैन चैत्य एवं विहारों की स्थिति हिन्दू मठों एवं मन्दिरों की भाँति हो गयी थी जिनमें तीर्थंकरों की प्रतिमाओं से युक्त मन्दिर भी थे। इन मन्दिरों में उपाश्रय के लिये प्रायः एक ही गण के साधु-साध्वी निवास करते थे। कहीं-कहीं इन्हीं भिक्षुओं पर मन्दिर की सम्पूर्ण व्यवस्था की जिम्मेदारी भी होती थी। जैन भिक्षुओं को भूमिदान उनके आवास अथवा भोजन के लिये दिया गया किन्तु जैन मन्दिरों को भूमिदान सम्भवत: जैन मन्दिर के निर्माण, जीर्णोद्धार, अर्हतों की पूजा सम्बन्धी आवश्यक सामग्रियों तथा तदाश्रयी संघ के भोजन आदि के लिये दिया गया। अभिलेखीय विवरणों में जैन मठोंमंदिरों के निर्माण जीर्णोद्धार, मठ प्रबन्ध तथा अन्य आवश्यकताओं के लिये विभिन्न प्रकार के करमुक्त ग्रामों के दान के अनेकशः उदाहरण प्राप्त होते हैं१. कदम्ब नरेश मृगेश वर्मा द्वारा अरहन्त देव मंदिर के जीर्णोद्धार एवं देव पूजा के लिये एक निवर्तन भूमि का दान। २. चौहान अल्हण देव एवं कीर्तिपाल द्वारा२२ महावीर मन्दिर के लिये करमुक्त भूमिदान। ३. गंग नरेश मारसिंह द्वारा अर्हत् मन्दिर से सम्बद्ध जिनालय का निर्माण तथा ग्रामदान।२३ ४. होयसल नरेश विनयादित्य तथा उसके पुत्र त्रिभुवनमल्ल२४ यरेयंग द्वारा कल्पवप्पु पर्वत की बस्तियों का जीर्णोद्धार तथा भिक्षुओं के निमित्त आहार, भोजन, वस्त्र आदि का दान। ५. विक्रम शांतरदेव द्वारा पंच वसदि के जैनाचार्य२५ को उपर्युक्त उद्देश्य हेतु करमुक्त ग्रामदान। उपरोक्त विवरणों से स्पष्ट है कि प्रारम्भ में जैन भिक्षु अनगारी था। त्याग ही उसके लिये सबसे बड़ा दान बताया गया था, किन्तु संघ-विस्तार को ध्यान में रखकर अतिथि जैन भिक्षुओं के लिये निश्चित आवास की व्यवस्था की गयी। संघ विस्तार तथा स्थायी आवास की प्रक्रिया में उत्तरोत्तर जैन भिक्षुओं की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये भूमि, भवन, क्षेत्र, ग्राम इत्यादि का भी दान दिया जाने लगा, जिससे जैन भिक्षु शांतिमय वातावरण में अध्ययनमनन कर सकें। इतना विशेष है कि उपासक द्वारा ग्रामादि का दान किसी एक साधु के लिए नहीं था अपितु समय-समय पर आने वाले सभी साधुओं
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy