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________________ पश्चिम भारत के जैनाचार्यों का साहित्यिक अवदान : २५ चार पूर्वों की बिना अर्थ की । इस प्रकार श्वेताम्बर परम्परा मानती है कि चौदह पूर्वों का ज्ञान स्थूलभद्र तक था जिन्होंने नेपाल में अपने गुरु भद्रबाहु (भद्रबाहु प्रथम) से यह ज्ञान प्राप्त किया था। दिगम्बर परम्परा का विश्वास है कि चौदह पूर्वों के ज्ञान की यह अक्षुण्ण धारा भद्रबाहु के समय ही समाप्त हो गई थी। इस परम्परा के अनुसार भद्रबाहु के समय १२ वर्ष का भयंकर अकाल पड़ा था। भद्रबाहु सहित सभी भिक्षु दक्षिण भारत चले गये। वहीं भद्रबाहु की मृत्यु हो गयी और उनकी मृत्यु के साथ ही ज्ञान की यह धारा भी समाप्त हो गई। समय के झंझावात में पूर्व - ज्ञान की यह धारा भले ही क्षीण हो गई । पर सर्वथा समाप्त नहीं हुई और अनुकूल समय आते ही प्रज्ञा सम्पन्न आचार्यों ने ज्ञान की इस धारा को अक्षुण्ण रखने का भरपूर प्रयत्न किया और इस सत्प्रयास में प्रशंसनीय सफलता भी प्राप्त की। इनमें गणधरों का योगदान सर्वाधिक है। इसीलिए आगम ग्रन्थों को गणिपिटक भी कहा गया। महावीर के ग्यारह गणधर थे। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार महावीर की मृत्यु के पूर्व ही सुधर्मा एवं इन्द्रभूति गौतम को छोड़कर शेष गणधरों की मृत्यु हो चुकी थी। अतः श्वेताम्बर परम्परा महावीर के बाद सुधर्मा को महावीर के सारे उपदेशों के संकलन का श्रेय देती है जबकि दिगम्बर परम्परा महावीर की मृत्यु के बाद प्रधान गणधर इन्द्रभूति को उनका उत्तराधिकारी मानती है। जैन श्वेताम्बर अंग ग्रन्थों में सुधर्मा और उनके प्रधान शिष्य आचार्य जम्बू के मध्य वार्तालाप वर्णित है। सामान्य रूप में श्वेताम्बर परम्परा में १२ अंग, (ग्यारह अंग प्रचलन में तथा बारहवाँ अंग दृष्टिवाद को नष्ट माना जाता है), १२ उपांग (एक उपांग वृष्णिदशा समाप्त हो गया), दस प्रकीर्णक, छः छेदसूत्र, चार मूलसूत्र एवं दो चूलिकासूत्र मान्य हैं। समय के अन्तराल के साथ आगमों की यह संख्या बढ़ती गई और यह ८५ तक पहुँच गई, किन्तु सामान्य तौर पर यह संख्या श्वेताम्बरों के मूर्तिपूजक सम्प्रदाय में ४५, स्थानकवासी और तेरापन्थ सम्प्रदाय में ३२ तथा दिगम्बर परम्परा में यह संख्या २६ तक सीमित है। यहाँ १२ अंग प्रविष्ट और १४ अंग बाह्य माने गये हैं जो अनुपलब्ध हैं। ३ अपने विवेच्यकाल में पश्चिम भारत में भी जैनाचार्यों का इस साहित्य के संरक्षण एवं परिरक्षण में अप्रतिम योगदान रहा है। जैसाकि सर्वविदित है जैनाचार्यों ने तीर्थंकरों के उपदेशों को सुरक्षित रखने के लिए कई वाचनायें कीं। श्वेताम्बर मान्यतानुसार ऐसी तीन प्रमुख वाचनाओं में पहली वाचना
SR No.525073
Book TitleSramana 2010 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size13 MB
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