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साहित्य सत्कार
पुस्तक समीक्षा ग्रन्थ-'सुदर्शनचरितम्', लेखक- श्री विद्यानन्दी, हिन्दी अनुवादकआनन्द कुमार जैन, संपादक- प्रो. (डॉ०) कमलेश कुमार जैन, प्रकाशकनिर्ग्रन्थ फाउण्डेशन, भोपाल, प्रथम संस्करण २००९, मूल्य-३०० रुपया
मुमुक्षु विद्यानन्दी द्वारा रचित 'सुदर्शनचरितम्' संस्कृत भाषा की एक महत्त्वपूर्ण कृति है, जिसका हिन्दी अनुवाद आनन्द कुमार जैन ने प्रो. (डॉ.) कमलेश कुमार जैन के संपादकत्व में किया है। ध्यातव्य है कि भगवान महावीर की परम्परा में दस अन्तकृत् केवली हुए हैं। 'सुदर्शनचरितम्' भगवान् महावीर के पाँचवें अन्तकृत् केवली सुदर्शन स्वामी के जीवन चरित पर आधारित ग्रन्थ है। सुदर्शन स्वामी का जीव अपने पूर्व जन्म में व्याघ्र, कुत्ता, शिकारी-पुत्र सुभग नामक गोपालक तदनन्तर सुदर्शन कुमार के रूप में जन्म लेता है तथा अपने प्रबल पुरुषार्थ, पुण्य-कर्म, णमोकार मन्त्र व शील के प्रभाव से उत्तम मनुष्य पर्याय को प्राप्त कर अन्त में सर्वोच्च पद 'मोक्ष' को भी प्राप्त कर लेता है इससे यह सिद्ध होता है कि हमें कभी भी सत्य का त्याग नहीं करना चाहिये क्योंकि जीत अन्ततः सत्य की ही होती है।
प्रमाणों के आधार पर विद्यानन्दी का समय वि.सं. १४९९ से १५३८ के मध्य था। इस आधार पर 'सुदर्शनचरितम्' का लेखन काल १५३१ (ई. सन् १४५६) के आस-पास माना जाता है।
- इस ग्रन्थ की विशेषता है कि मूल श्लोकों के मध्य में अन्य ग्रन्थों से उद्धृत १६ पद्य भी हैं जो संस्कृत अथवा प्राकृत भाषा के हैं। इसमें मुमुक्षु विद्यानन्दी ने शान्त रस के साथ अलंकारों, छन्दों आदि काव्य तत्त्वों का भी यथावसर प्रयोग किया है जो इसे महाकाव्यीय रूप प्रदान करता है।
प्रस्तुत ग्रन्थ १२ अधिकारों में विभक्त है जिनमें १२८८ अनुष्टुप्, १० शार्दूलविक्रीडित, ६ आर्या, ४ मालिनी, ३ इन्द्रवज्रा, ३ उपजाति और एक वसन्ततिलका छन्द है। इस प्रकार कुल मिलाकर १३५१ पद्यों से सुसज्जित इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद कर आनन्द कुमार जैन ने हिन्दी पाठकों को अमूल्य उपहार दिया है। इस ग्रन्थ के अनुवादन व संशोधन में अनेक विशिष्ट विद्वानों ने भी सहयोग दिया है जिससे ग्रन्थ में प्रामाणिकता के साथ ओजस्विता भी सहज ही द्रष्टव्य होती है। इस कार्य के लिये आनन्द कुमार जैन निश्चय ही बधाई के पात्र हैं। यह ग्रन्थ सुधी पाठकों के लिए अवश्य ही संग्रहणीय है।
डॉ. शारदा सिंह (शोधाधिकारी, पार्श्वनाथ, विद्यापीठ)