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________________ ६४ : श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ / अप्रैल-जून १० का सिद्धान्त हमें मताग्रही और एकांगी विचारक होने से रोकता है। यह हमें एक व्यापक दृष्टिकोण और उदारतापूर्वक सोचने की शिक्षा देता है। यह विभिन्न धर्मों और विचारधाराओं के बीच होने वाली टकराहट की समस्याओं का समाधान करने के लिए अधिक आवश्यक है। प्रो. टी. जी. कलघाटगी कहते हैं - 'अनेकान्तवाद की भावना सामाजिकपरिप्रेक्ष्य में अत्यधिक आवश्यक है, विशेषकर आज के समय में, जबकि आपस में टकराहट रखने वाली विचारधाराएँ आक्रमक शैली में अपने अतिश्रेष्ठ होने का दावा प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही हैं। अनेकान्तवाद युक्तिसंगतता और सामाजिक सहिष्णुता की भावना का संदेश देता है । ३१ आज समाज में सहिष्णुता की भावना को प्रभावकारी तरीके से विकसित करने की आवश्यकता है। जैनधर्म अपने प्रारंभिक काल से ही सहिष्णुता अर्थात् अन्य धर्मों के प्रति आदरभाव का समर्थक रहा है। सूत्रकृतांग में महावीर उद्घोषित करते हैं- 'जो अपने धर्म और विचारधारा की प्रशंसा करते हैं और अपने विरोधियों के धर्म और विचारधारा को मिथ्या कहकर अस्वीकृत करते हैं, तो वे सत्य का अपलाप करन वाले जन्म और मृत्यु के चक्र में परिभ्रमण करते हैं । ३२ जैनदार्शनिक सदैव यह कहते हैं कि सभी विचारधाराएँ अपनी-अपनी दृष्टि से सत्य होती हैं, परन्तु जो दूसरों के विचारों या मतों को पूर्णतया नकारते हैं, वे मिथ्यावादी होते हैं। इस प्रकार जैन-संत सदैव ही अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु रहे हैं और उन्होंने सदैव ही धर्मों के बीच टकराहट को टालने का प्रयास किया है। वर्तमान समाज की मूलभूत समस्याएँ मानसिक तनाव, हिंसा और विभिन्न धर्मों और विचारधाराओं के बीच टकराहट की है। जैनधर्म ने मानवजाति की इन समस्याओं का अपरिग्रह, अहिंसा और अनेकान्त के तीन मूलभूत सिद्धान्तों के माध्यम से समाधान करने का प्रयास किया है। यदि मानवजाति सामूहिक रूप से इन सिद्धान्तों का अनुसरण करती है, तो विश्व में शान्ति और सहिष्णुता स्थापित हो सकती है । सन्दर्भ १. अहिंसा, द साइन्स ऑफ पीस, बोथरा सुरेन्द्र, फोरवर्ड, डी. आर. मेहता, पृ. २७ २. वही, पृ. ४६ ३. द वायस ऑफ ह्यूमैनिटी, डेविड, सी. डब्ल्यू., पृ. १ ४. आचारांग (आयारो), जैन विश्वभारती, लाडनूं, १/७/१४९ ५. वही, २/४ / ९६
SR No.525072
Book TitleSramana 2010 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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