SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ अप्रैल-जून १० प्राकृत साहित्य में अंकित नारी डॉ. कल्पना जैन [लेखिका ने इस आलेख में 'नारी' के विविध रूपों का चित्रण किया है। जैसी परिस्थितियाँ प्राचीन काल में थीं वैसी आज तो नहीं है परन्तु नारी के वे सभी रूप (उत्कृष्ट और अधम ) आज भी दृष्टिगोचर होते हैं। आज शिक्षा का प्रसार ज्यादा है तथा स्वातन्त्र्य भी अधिक है ] * प्राकृत साहित्य के ग्रन्थों में समाज के विभिन्न वर्गों और विषयों का वर्णन करते समय नारी की विभिन्न स्थितियों व अवस्थाओं का अंकन भी हुआ है। प्राकृत साहित्य की प्रमुख विशेषताओं में एक विशेषता उसका कथात्मक होना है। आयामों की विविधताओं के कारण प्राकृत कथा साहित्य के आकाश में अनेक नारी पात्र ऐसे हैं जो अपने विशिष्ट गुणों के कारण चमकीले नक्षत्रों की भांति जगमगाते हैं। सदाचरण, शील- पालन, साहस, त्याग, कला-कौशल, वात्सल्य एवं उत्कट प्रेम-भावना आदि जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा में प्राकृत कथा साहित्य में नारी पात्रों ने विश्व के कथा प्रेमियों का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है। स्वस्थ समाज और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में भी इन नारियों के चरित्र आज भी पथ प्रदर्शक हैं, प्रेरणास्पद हैं। प्राकृत कथा साहित्य में नारी के विविध रूपों का जीवन्त चित्रण है। 'समराइच्चकहा' 'कुवलयमालाकहा', 'णायारंभकहा', पउमचरियं, गाथासप्तशती, धूर्ताख्यान आदि ग्रन्थों का विशेष अध्ययन करने वाले विद्वानों ने नारी के कन्या, प्रेमिका, भार्या, माता, बहिन, दासी, साध्वी आदि कई रूपों में समाज में उनकी क्या स्थिति थी, इस पर प्रासंगिक रूप से प्रकाश डाला है। इस युग के प्राकृत कथा साहित्य में अंकित कन्या, भार्या और माता को केन्द्र में रखकर ही तत्कालीन समाज में उनकी प्रतिष्ठा आदि का रेखांकन किया गया है। कन्या परिवार में अन्य सदस्यों के साथ पुत्री अर्थात् कन्या का भी महत्त्वपूर्ण स्थान था। पुत्रों के समान ही पुत्री के जन्म का भी उत्सव मनाया जाता था। कुवलयमाला का जन्म होने पर पुत्र जन्म से भी अधिक उत्सव मनाया गया वरिष्ठ प्राध्यापिका, प्राकृत भाषा विभाग, श्री लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली- ११००१६
SR No.525072
Book TitleSramana 2010 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy