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सम्पादकीय
'श्रमण' के बढ़ते चरण पंजाब केशरी परम पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज की पुण्य स्मृति में आज से ७३ वर्ष पूर्व (ई. १९३७) 'पार्श्वनाथ विद्याश्रम' की स्थापना वाराणसी में की गई थी। कालान्तर में इस उच्च शोध शिक्षण संस्थान का नाम 'पार्श्वनाथ विद्यापीठ' कर दिया गया। ई. सन् १९४९ नवम्बर से पं. कृष्णचन्द्राचार्य (मुनि जी) के सम्पादकत्व में पार्श्वनाथ विद्यापीठ से 'श्रमण' नाम से मासिक-पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। जैन धर्म, दर्शन, पुरातत्त्व, संस्कृति, कला, इतिहास, काव्य, आगम आदि से सम्बन्धित शोधात्मक लेखों से सुसज्जित इस पत्रिका ने शीघ्र ही समाज में और विद्वज्जगत् में शीर्ष स्थान प्राप्त कर लिया। कालान्तर में श्री भूपेन्द्रनाथ जैन (पूर्व अध्यक्ष) के पिता स्वनाम धन्य स्व. श्री लाला हरजसराय जो इस विद्यापीठ के प्रथम मंत्री थे, के सत्प्रयासों से अल्पावधि में ही यह पत्रिका लोकप्रिय हो गई। ___ 'श्रमण' का प्रकाशन ४० वर्षों (ई. १९८९) तक निरन्तर मासिक पत्रिका के रूप में होता रहा। इसके बाद वर्ष ४८ (ई. १९९७) तक तीन-तीन अंकों को एक साथ जोड़कर त्रैमासिक कर दिया गया। पश्चात् वर्ष ४९ (ई. १९९०) से इस मासिक पत्रिका को विधिवत् त्रैमासिक बना दिया गया। तब से निरन्तर यह त्रैमासिक ही प्रकाशित हो रही है। बीच-बीच में अपरिहार्य कारणों से दोदो अंकों के संयुक्ताङ्क (षाण्मासिक) निकाले गए। इसके पिछले दोनों अंक संयुक्ताङ्क ही प्रकाशित हुए हैं। मैंने इस विद्यापीठ में ११ मार्च २०१० से निदेशक का पद भार ग्रहण किया है तथा १.६.२०१० से सम्पादक के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया है। अब मेरा प्रयास होगा कि समय से श्रमण आपके पास पहुँच जाए। इसमें आपके सहयोग की भी अपेक्षा है।
पार्श्वनाथ विद्यापीठ के वर्तमान अध्यक्ष श्री रमेशचन्द्र बरड़ तथा मंत्री श्री इन्द्रभूति बरड़ ने इस दिशा में पूर्ण सहयोग देने का आश्वासन दिया है। विद्यापीठ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा अध्यक्ष, परामर्श मंडल, श्रमण, डॉ. शुगन चन्द जैन भी इस दिशा में पूर्ण सहयोग दे रहे हैं। उन्होंने इसकी उच्च गुणवत्ता बनाए रखने के लिए 'श्रमण' का परामर्श मण्डल भी बना दिया है। इसमें भारतवर्षीय तथा