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________________ श्रमण, वर्ष ६१, अंक २ अप्रैल-जून १० जैनागमों में शिक्षा का स्वरूप दुलीचंद जैन 'साहित्यरत्न' [जैनागमों में शिक्षा विषयक जो सामग्री मिलती है उसका यहाँ संग्रह किया गया है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की पूर्णता शिक्षा का लक्ष्य रहा है। आध्यात्मिक और भौतिक दोनों शिक्षाओं का समन्वय आवश्यक है। क्योंकि बिना चारित्र के शिक्षा अर्थ शून्य है। इस आलेख को और अधिक समृद्ध करने की आवश्यकता है। वर्तमान भारतीय शिक्षा ___ भारतवर्ष की वर्तमान शिक्षा प्रणाली परतंत्रता काल से ही अंग्रेजों द्वारा प्रचारित शिक्षा सिद्धान्तों पर आधारित है। स्वतंत्रता प्राप्ति के तिरसठ वर्षों के बाद भी उसमें कोई मौलिक परिवर्तन नहीं हुआ। एक विचारक ने ठीक ही कहा है कि वर्तमान भारतीय शिक्षा-प्रणाली न तो 'भारतीय' है और न ही वास्तविक रूप में 'शिक्षा' है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि 'शिक्षा मात्र उन विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो हमारे मस्तिष्क में दूंस-ठूस कर भर दिये जाते हैं और जो आत्मसात् हुए बिना वहाँ जीवन भर रहकर गड़बड़ मचाया करते हैं। हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है, जो 'जीवननिर्माण', 'मनुष्य-निर्माण' तथा 'चरित्र-निर्माण में सहायक हों।' सहस्रों वर्षों से इस देश में तीर्थंकरों, ऋषियों एवं आचार्यों ने मूल्य-आधारित शिक्षा प्रणाली का प्रचार किया है। डॉ० अल्तेकर ने प्राचीन भारतीय शिक्षा के सन्दर्भ में लिखा है-'प्राचीन भारत में शिक्षा अन्तर्योति और शक्ति का स्रोत मानी जाती थी, जो शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्तियों के संतुलित विकास से हमारे स्वभाव में परिवर्तन करती है और उसे श्रेष्ठ बनाती है ताकि हम एक विनीत और उपयोगी नागरिक के रूप में रह सकें।'२ स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा पद्धति में परिवर्तन करने हेतु अनेक आयोगों का गठन हुआ और उन्होंने भी चरित्रनिर्माणकारी जीवन-मूल्यों को शिक्षा में अन्तर्भूत करने पर जोर दिया। सन् १९६४ से सन् १९६६ तक डॉ० दौलत सिंह कोठारी, जो एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक थे, की अध्यक्षता में कोठारी आयोग का गठन हुआ। इसने अपने प्रतिवेदन में कहा था-'केन्द्रीय एवं प्रान्तीय सरकारों को नैतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों *अध्यक्ष- करुणा इन्टरनेशनल, ७०, सेम्बुदास स्ट्रीट, चेन्नई- ६००००१
SR No.525072
Book TitleSramana 2010 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh, Shreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size14 MB
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