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श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४-१ अक्टू.-दिस. ०९-जन.-मार्च १०
जीवन जीवन केवल सुख नहीं, जीवन केवल दुःख नहीं। सुख-दुःख से जीवन पूरा है, किसी एक के बिना अधूरा है। सुख में दुःख छिपा है, दुःख में सुख छिपा है। सुख का पूरक दुःख है, दुःख का पूरक सुख है। सुख हो व्यक्ति की सीमा में, दुःख हो व्यक्ति की सीमा में। संयम न छोड़ो सुख में, धैर्य न खोओ दुःख में। बिना कर्म कोई सुख नहीं बिना कर्म कोई दुःख नहीं। निज कर्म ही लाता है सुख को, निज कर्म ही लाता है दुःख को। अन्य कोई साधक नहीं। अन्य को बाधक नहीं। सुकर्म फलाता है सुख को कुकर्म फलाता है दुःख को कर्म ही जीवन-धरता है, कर्म ही जीवन-हरता है। दुष्कर्म तजो सद्कर्म करो आलस्य तजो संघर्ष करो। संतों ने यही सुनाया है। धर्मो ने यही बताया है। -डॉ. बशिष्ठ नारायण सिन्हा कृष्णपुरी कालोनी, वाराणसी