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श्रमण, वर्ष ६०, अंक १/जनवरी-मार्च २००९
३. परमाणु को एक विशुद्ध ज्यामितिक बिन्दु के रूप एकादश शतक के दशवें उद्देशक में जीव-अजीव की
में देखा जा सकता है, क्योंकि उसमें न तो लम्बाई चर्चा परमाणु के रूप में की गयी है। होती है न चौड़ाई होती है तथा न ही गहराई होती द्वादश शतक के द्वितीय उद्देशक में परमाणु पुद्गल है। वह अन्तिम शाश्वत इकाई है।
की चर्चा है। चतुर्थ उद्देशक में दो से दस परमाणु पुद्गलों के ४. परमाणु वह है जिसका आदि, मध्य और अन्त संयोग व विभाग का निरूपण पाया जाता है। संख्यात तथा एक ही है।
असंख्यात परमाणु पुद्गलों का निष्पक्ष संयोग-विभाग निरूपण ५. परमाणु ५ वर्गों में से एक वर्ण है। इसके स्वरूप तथा अनन्त परमाणु पुद्गलों के संयोग, परमाणु पुद्गल परिवर्तन
को निम्न प्रकार से समझाया गया है- आदि की विवेचना की गई है। सातवें उद्देशक में लोक में क. परमाणुसमस्त भौतिक जगत्कामूलकारणहै। परमाणु मात्र प्रदेश में भी जीव के जन्म-मरण की चर्चा की ख. परमाणु भौतिक जगत् की अन्तिम परिणति है। गयी है। ग. वह सूक्ष्म है इन्द्रियग्राह्य नहीं है।
चतुर्दश शतक के चतुर्थ उद्देशक में परमाणु-पुद्गल घ. वह नित्य है।
की शाश्वतता-अशाश्वतता एवं चरमता-अचरमता का निरूपण परमाणु के गुण
किया गया है। इसी शतक के सातवें उद्देशक में परमाणसूक्ष्म परमाणु और व्यावहारिक परमाणु दोनों में वर्ण, पुद्गल की तल्यता
पुद्गल की तुल्यता का वर्णन मिलता है। दसवें उद्देशक में गंध, रस और स्पर्श ये चार गुण और अनन्त पर्याय होते हैं। केवलज्ञानी के सन्दर्भ में परमाणु पुद्गल की चर्चा की गयी है। एक परमाणु में एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श षोडष शतक के अष्टम उद्देशक में परमाणु की एक (शीत-उष्ण) होता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा है कि पर्याय समय में लोक के पर्व-पश्चिम आदि चरमान्त तक गति के की दृष्टि से एक गुण वाला परमाणु अनन्त गुण वाला हो जाता सामर्थ्य की विवेचना की गयी है। है और अनन्त गुणवाला परमाणु एक गुण वाला हो जाता है। अष्टदश शतक के उद्देशक आठ में गणधर गौतम और
वतीसूत्र के प्रथम शतक के दशवें उद्देशक में दो भगवान् के बीच परमाणु के विषय में जो प्रश्नोत्तर हुए हैं से पांच परमाणु पुद्गलों का विस्तृत वर्णन मिलता है, दो उनका वर्णन मिलता है। परमाणु नहीं चिपकते हैं, किन्तु तीन एवं पांच परमाणु पुद्गल विंशति शतक के पंचम उद्देशक में परमाणु-पुद्गल चिपक जाते हैं।
से लेकर दो-प्रदेशी, दस-प्रदेशी तथा संख्यात-असंख्यात द्वितीय शतक के द्वितीय उद्देशक के आठवें सूत्र में अनन्त प्रदेशी स्कन्ध में पाये जाने वाले वर्ण, गन्ध, रस और पुद्गल परमाणु की मुख्य आठ वर्गणाओं का वर्णन है- स्पर्श के विविध विकल्पों की प्रारूपणा की गयी है। अन्त में
१. औदारिक वर्गणा, २. वैक्रिय वर्गणा, ३. आहार द्वय क्षेत्र काल-भाव विषयक परमाणु चतुष्टय के विविध वर्गणा, ४. तैजस वर्गणा, ५. कार्मण वर्गणा, ६. श्वासोच्छ्वास प्रकारों का वर्णन मिलता है। वर्गणा, ७. वचन वर्गणा, और ८. मन वर्गणा। इसी शतक के पंचविंश शतक के द्वितीय उद्देशक में लोक के एक दसवें उद्देशक में पुद्वाल के चार प्रकार बताये गये हैं। प्रदेश में पुद्गलों के चय-अपचय का निरूपण किया गया है।
पंचम शतक के सप्तम उद्देशक में सकम्प और अकम्प तीसरे उद्देशक में परमाणु-पुद्गलों की गति आकाश प्रदेशों की की चर्चा की गयी है। इसी शतक के आठवें उद्देशक में काल श्रेणी के अनुसार या उसके विपरीत होती है, इसका वर्णन की चर्चा की गयी है। सप्तम उद्देशक में परमाणु को अभेद्य मिलता है। चौथे उद्देशक में परमाणु-पुद्गल से अनन्त प्रदेशी अविभाज्य कहा गया है।
स्कन्धों तक ही द्रव्य प्रदेशार्थ से यथायोग्य बहुत्व की प्ररूपणा अष्टम शतक के प्रथम उद्देशक में पुद्गल के भेदों की परमाणु से अनन्त प्रदेशी, सकम्प-निष्कम्प स्कन्ध तक के चर्चा की गयी है।
अल्प-बहुत्व की चर्चा, परमाणु से लेकर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध