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________________ ४ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८ समस्त जीव, वनस्पति जगत् और मनुष्य जीवन में परस्पर सामञ्जस्य प्राचीन भारत के ऋषि तपोवन में मिलता है। वनस्पति और मानव जीवन का इतना गहरा सम्बन्ध है कि वृक्षों और लताओं को देव तुल्य माना गया है । पृथ्वी की प्रार्थना करते हुए कहा गया है - हे पृथ्वी माता ! तुम्हारे वन हमें आनन्द और उत्साह से भर दें । अथर्ववेद' में वर्णन आया है कि ऋषियों को जब कभी वृक्षारोपण करना पड़ता था तो वे क्षमायाचना करते हुए कहते थे यत्ते भूमे विखनामि क्षिप्रं तदपि रोहतु । मा ते मर्म विमृग्वर मा ते हृदयमर्पिपम् । मनुस्मृति में भी हरे पेड़ और सूखे पेड़ में अन्तर बताते हुए हरे पेड़ को काटना निषिद्ध बताया गया है। दोनों में उतना ही अन्तर है जितना जीवित शरीर और मृत शरीर में अन्तर है। इसलिए ईंधन आदि के लिए हरे-भरे वृक्ष को काटने को पाप कहा गया है तथा इस पाप के प्रायश्चित्त स्वरूप सावित्री आदि सौ ऋचाओं का जप करना चाहिए। ऋषि-मुनि वृक्षों को अपने सुख-दुःख का साथी मानते थे और उनका अभिवादन करते थे। यात्रा पर जाने से पूर्व उनसे विदा लेते थे। रामायण में वर्णन आया है कि जनकपुरी से मिथिला की ओर प्रस्थान करते समय ऋषि विश्वामित्र वनदेवताओं अर्थात् सिद्धाश्रम के पेड़ों से कहते हैं- आपका कल्याण हो अब मैं चलता हूँ । यज्ञकार्य सम्पन्न कर सिद्धाश्रम से जा रहा हूँ। गंगा के उत्तरी तट पर चलता हुआ मैं हिमालय की उपत्यका में जाऊँगा । * महर्षि वाल्मीकि ने मानव का प्रकृति के प्रति लगाव को बड़ी ही सुन्दरता से व्याख्यायित किया है। रामायण का अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि वृक्ष और मानव दोनों ही एक-दूसरे के सहचर थे और एक-दूसरे का सम्मान पाते थे, कुछ उद्धरण इस प्रकार हैं 'भारद्वाज आश्रम का वर्णन करते हुए महर्षि वाल्मीकि ने कहा है, भरद्वाज मुनि के तेज के प्रभाव से बेल के वृक्ष मृदंग बजाते थे, बहेड़े के पेड़ ताल देते थे और पीपल नृत्य करते थे। देवदारु, ताल, तिलक और तमाल नाम वाले वृक्ष कुबड़ों और बौनों की भूमिका निभाते थे । ' Jain Education International 'राम, लक्ष्मण और सीता को चित्रकूट का रास्ता दिखाते हुए भारद्वाज मुनि ने श्यामवट नाम के एक ऐसे बरगद वृक्ष का उल्लेख किया है जो सदैव हरा-भरा और For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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