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________________ ७४ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८ विषय वर्तमान युग के वाणिज्य एवं व्यापार प्रबंधन (Commerce and Business Management) विद्या की आधारशिला कहे जा सकते हैं। कुवलयमाला में विभिन्न भाषाओं एवं बोलियों का भी विवरण मिलता है। ग्रंथकार ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं का उल्लेख करने के साथ ही ग्रामीण बोलियों,३ शब्दों की भाषा एवं देशी बोलियों५ का भी विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया है। स्वाध्याय जो शिक्षण-पद्धति का महत्त्वपूर्ण पक्ष माना जाता है, पर जैन ग्रंथों में विशेष बल दिया गया है। आदिपुराण के रचनाकार जिनसेनाचार्य ने स्वाध्याय के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है - स्वाध्याय करने से मन का निरोध होता है, मन का निरोध होने से इन्द्रियों का निग्रह होता है। अतः स्वाध्याय करने वाला व्यक्ति स्वत: संयमी और जितेन्द्रिय बन जाता है।६ जैन साहित्य के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है तत्कालीन शिक्षा-व्यवस्था में स्त्रियों को भी शिक्षा ग्रहण करने का समुचित अधिकार था। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की दोनों पुत्रियाँ ब्राह्मी एवं सुन्दरी विदुषी महिलाएँ थीं। ब्राह्मी के नाम पर ही भारत की प्राचीन एवं बहु-प्रचलित लिपि का नामकरण किया गया है। ब्राह्मी को चौसठ कलाओं तथा सुन्दरी को गणित विद्या में पारंगत बताया गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि जैनधर्म में नारियों के प्रति सम्माननीय दृष्टि रखी जाती थी जो बाद के कालों में भी निरन्तर प्रवहमान रहा। समराइच्चकहा से ज्ञात होता है कि रत्नावती को विभिन्न प्रकार की शिक्षाएँ दी गई थीं। वह संगीत एवं चित्रकला में विशेष योग्यता रखती थी। इसी ग्रंथ में कुसुमावलीको काव्य एवं चित्रकला आदि की शिक्षा प्रदान करने का भी उल्लेख मिलता है। कुवलयमाला में मदनमंजरी द्वारा एक राजवीर को विभिन्न प्रकार की विद्याओं को पढ़ाने का उल्लेख है। उसने अल्प समय में ही उस राजवीर को अक्षर-ज्ञान, लिपि-ज्ञान और वास्तुलक्षण आदि की शिक्षा देकर निपुण बना दिया। कालान्तर में उस राजवीर द्वारा शिक्षित एक कन्या प्रसिद्ध भिक्षुणी "ऐलिका' बनी। पूर्व-मध्यकालीन भारतीय समाज में कर्मकाण्डों का महत्त्व अधिक था। उस समय स्त्री-शिक्षा पर बंदिश लगाने के उद्देश्य से ही 'स्त्री शूद्रो नाधीयताम्' का मंत्र पढ़ा जा रहा था। लेकिन तत्कालीन जैन समाज ने स्त्रियों की शिक्षा पर बन्धन लगाने से परहेज किया। इस बात का सार्थक प्रमाण आदिपुराण में मिलता है जिसमें पुत्र के साथ पुत्री के जन्म पर भी काफी हर्षोल्लास व्यक्त किया गया है। शिक्षा के महत्त्व को विभिन्न कथाओं, उदाहरणों एवं प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त कर जैन आचार्यों ने स्त्रियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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