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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८
भास 'उत्तर आधुनिकतावादी' विचारों का पूर्वाभास देते हैं। यह उनके महान् साहित्यिक चिन्तन एवं प्रयोग का स्पष्ट उदाहरण है। सन्दर्भः १. 'चारुदत्तम्', महाकवि भास, व्याख्याकार-पं परमेश्वरदीन पाण्डेय,
परिशिष्ट- पृ०-१६५, प्रका०- कृष्णदास अकादमी, वाराणसी, १९९५ । २. वही, पृ० १६५ । ३. शर्मा, आचार्य देवेन्द्रनाथ, भाषा विज्ञान की भूमिका, पृ० १३१, प्रका०
राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली-१९८९ । ४. वाग्भट्टालङ्कार, सिंहदेवगणि की टीका- २/२ । ५. कर्पूरमजरी, वासुदेव की 'संजीवनी' टीका - ९/२ । ६. षड्भाषाचन्द्रिका, नरसिंह, सम्पा०- कमलाशंकर प्राणशंकर त्रिवेदी, प्रका०
बाम्बे संस्कृत और प्राकृत सिरीज- १९१६ । ७. मार्कण्डेय कवीन्द्र, प्राकृतसर्वस्व, सम्पा०- भट्टनाथ स्वामी, ग्रन्थप्रदर्शनी,
विजगापट्टम, १९२७ । ८. नाट्यशास्त्र, भरतमुनि, १७/४६-४९ । ९. श्रीवास्तव, कृष्णचन्द्र, प्राचीन भारत का इतिहास, पृ० ९७, प्रका०
यूनाइटेड बुक डिपो, यूनिवर्सिटी रोड, इलाहाबाद-१९९८ । १०. दशरूपक, - धनञ्जय, -३/७०-७२, प्रका- भारतीय विद्या संस्थान,
वाराणसी, २०००। ११. शास्त्री, डॉ० नेमिचन्द्र, महाकवि भास, पृ०-३२, प्रका०- मध्यप्रदेश
हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल, १९७२ । १२. मालविकाग्निमित्रम्, कालिदास, प्रथम अङ्क, पृ०-६, प्रका०- चौखम्बा
संस्कृत सिरीज, वाराणसी-१९६५। १३. द्रष्टव्य महाकवि भास, डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, पृ०-३२, प्रका- मध्यप्रदेश
हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल- १९७२ । १४. वही, पृष्ठ- ३२ । १५. वही, पृष्ठ- ३३ । १६. वही, पृष्ठ- ३३ । १७. वही, पृष्ठ- ३४ ।
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