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________________ ६८ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २००८ १९ रहे होंगे। उक्त ऐतिहासिक व्यक्तियों का काल ५वीं-४थी शती ई० पू० है, ' अतएव . महाकवि भास तत्कालीन समाज में निश्चित रूप से विद्यमान रहे होंगे। इस दृष्टि से भास की प्राकृत भाषा उसी काल की है, यह सप्रमाण कहा जा सकता है। भास द्वारा प्रयुक्त भाषा के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि जैन आचार्यों की भाँति भास भी अपनी रचनाओं में जनभाषाओं के प्रयोग की प्रवृत्ति को अङ्गीकार करते हैं। महाकवि भास ने जनसाधारण के मनोभावों, हृदय की वृत्तियों एवं विभिन्न परिस्थितियों में उत्पन्न होने वाले मानसिक विकारों का बड़ी निपुणता से चित्रण किया है । राग-द्वेष, हर्ष-विषाद, प्रेम-करुणा, उत्साह-अवसाद प्रभृति जितने भाव मानवहृदय के हो सकते हैं, उनका सरस वर्णन त्रयोदश रूपकों में देखा जा सकता है। भास ने जीवन की उन शाश्वत समस्याओं, यथा- धर्म - काम, धर्म-अर्थ, प्रणय- कर्तव्य, स्वार्थ- परमार्थ आदि का उद्घाटन किया है जिनका मानव-जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है। यद्यपि भासकृत रूपकों में जैन और बौद्ध धर्मों के प्रति किसी प्रकार की आस्था प्रकट नहीं होती है। उनके द्वारा प्रस्तुत किये गये धार्मिक आदर्श वैदिक धर्म से सम्बन्धित हैं। यह सत्य है कि नाट्यकार जैन और बौद्ध धर्म से परिचित थे, इसीलिए उन्होंने जैन और बौद्ध श्रमणों का उपहास भी किया है। २० यह पक्ष भी अवधेय है कि भासकृत रूपकों में शूद्र द्वारा बिना मन्त्रपाठ के देवता की वन्दना करायी गयी है। इसका कारण यह हो सकता है कि वैदिक युग में शूद्र के द्वारा मन्त्रवाचन वर्जित था। धर्मसूत्रों में वर्णित है कि शूद्र देववन्दन कर सकता है । मन्त्रोच्चारपूर्वक देवदर्शन करना उसके लिए निषिद्ध है। यह प्रथा उस समय की ओर सङ्केत करती है, जब वैदिक युग के अनन्तर जैन तथा बौद्ध धर्मों के प्रभाव के कारण शूद्रों को धार्मिक अधिकार दिये जाने लगे थे और परम्परावादी कर्मकाण्डी वेदाध्ययन का अधिकार शूद्रों को नहीं देना चाहते थे। अतएव उस समय की सामाजिक मान्यता के आधार पर भास की प्राकृत भाषा एवं समय ई० पू० ४ थी शती होना सम्भव है। महाकवि भास ने लोकभाषा को साहित्य में अपनाकर जनजीवन में उद्वेलित विचारों को अपनाने का संकेत दिया है। इस अर्थ में उनकी दृष्टि जनवादी है। वैसा साहित्य लोक-साहित्य नहीं कहला सकता, जिसमें 'कन्सर्न फॉर अदर्स' (Concern for others, अन्य जनों के प्रति संवेदनशीलता) नहीं हो अथवा जिसमें 'ऑल्टरिटी सेन्सिटिव वैल्यू (Alterity sensitive value) को महत्त्व नहीं दिया गया हो । यही 'उत्तर आधुनिक साहित्य (Post Modern Literature) की माँग है | महाकवि भास ने अपनी संवेदना के द्वारा द्वैत को समाप्त करने की अनिवार्यता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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