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________________ ६६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-1 र - दिसम्बर २००८ भासकृत रूपकों में प्रयुक्त प्राकृत भाषा के आधार पर अनेक विद्वानों ने भास के काल का आकलन किया है। डॉ० हर्टेल ने 'मुण्डकोपनिषद्' की भूमिका में लिखा है कि भास की रचनाओं की प्राकृत भाषा कालिदास की रचनाओं की प्राकृत भाषा की अपेक्षा प्राचीन है। " गवेषक की दृष्टि में डॉ० हर्टेल का उक्त कथन आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि कालिदास ने अपने नाटक 'मालविकाग्निमित्रम्' में पारिपारिवक के मुख से आदर के साथ भास का नाम लिया है- १२' प्रथितयशसां भाससौमिल्लकविपुत्रादीनां प्रबन्धानतिक्रम्य वर्तमानकवेः कालिदासस्य क्रियायां कथं बहुमानः ।' उक्त विवचेन से स्पष्ट है कि कालिदास स्वयं ही भांस की नाट्यकला से प्रभावित थे, अतः भास एवं उनकी भाषा की प्राचीनता स्वत: : सिद्ध है। भासकृत रूपकों में प्रयुक्त प्राकृत भाषा का अनुसन्धान करने वाले विद्वानों में डॉ० ए० बनर्जी शास्त्री, विलियम प्रिण्ट्ज, लेस्नी, बी० एस० सुखथंकर प्रमुख हैं। सुखथंकर ने विलियम प्रिण्ट्ज के अध्ययन की आलोचना की है, जिसका प्रकाशन सन् १९४५ में हुआ। प्रिण्ट्ज ने 'पञ्चरात्र' और 'बालचरित' में गोपालकों की भाषा मागधी कहा है। ध्यातव्य है कि जिस मागधी में कर्ता कारक - एक वचन का अन्त 'ए' से होता है, वही मागधी भासकृत रूपकों में प्रयुक्त है। इसीलिए 'पञ्चरात्र' और 'बालचरित' के गोपालकों की भाषा को उत्तरी तथा पश्चिमी जनभाषाओं का रूप कहा जा सकता है। डॉ० वेलर ने इस प्राकृत को शौरसेनी कहा है। 'कर्णभार' में इन्द्र तथा 'बालचरित' में गोपालक की भाषा को प्रिण्ट्ज ने अर्धमागधी कहा है। भासकृत रूपकों में प्रयुक्त प्राकृत भाषा के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि इस पर पालि स्वरावली का पूर्ण प्रभाव है। नाट्यकार ने कर्ताकारक, एकवचन, उत्तमपुरुष में 'अहम्' के स्थान पर 'अहके' का प्रयोग किया है। अश्वघोष ने 'अहम्' के लिए ‘अहकम्' तथा पश्चात्वर्ती रूपकों में 'हके', 'अहके' और 'हगे' का प्रयोग हुआ है। १३ प्रो० लेस्नी ने भास की प्राकृत भाषा की परिवर्तनशीलता तथा विभिन्न रूपों के साथ प्रयोगों की अधिकता के आधार पर, अश्वघोष और कालिदास की तुलना करते हुए यह सिद्ध किया है कि ये नाटक कालिदास से पूर्व तथा अश्वघोष के बाद के हैं लेकिन बनर्जी व शास्त्री अश्वघोष के बाद होने में प्रमाण के अभाव में अपना समर्थन प्रकट नहीं कर सके हैं। १४ Jain Education International भासकृत रूपकों में 'अम्हाअं' और 'अम्हाणं' ये दो प्रयोग 'अस्माकं' के स्थान पर मिलते हैं। 'आम्' शब्द का प्रयोग भास के रूपकों में प्रचुर परिमाण में मिलता है। यह पालि और अन्य प्राकृतों में भी प्राप्त है। महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री ने लिखा है कि 'आम्' ही एक ऐसा शब्द है जो भास के पश्चात्वर्ती कवियों ने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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