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: श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८
इतना आकर्षण बढ़ा कि उसने वनों का उन्मूलन शुरू कर दिया, कृषि कला के विकास के साथ-साथ बहुमंजिली इमारतों के निर्माण ने वनों का शोषण करना प्रारम्भ कर दिया। शोषण इतना बढ़ा कि उसने व्यापार का रूप धारण कर लिया। इतना ही नहीं मानव वनों और वनस्पतियों के साथ-साथ पशु-पक्षियों, कीट-पतंगों का भी उपयोग करने लगा। जिसे चाहा उसे दोस्त बनाया, जिसे चाहा उसे रसलोलुपता का शिकार बनाया। इस प्रकार मानव ने भोजन, वस्त्र, गृह, परिवहन आदि के क्षेत्र में जैव-विविधता का प्रयोग किया। फलतः उसके ह्रास ने मानव के लिए संकट उत्पन्न कर दिया। जैविक विविधता के ह्रास में पर्यावरण की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पर्यावरण में परिवर्तन के साथ अनेक जैव जातियाँ विलुप्त हो गई हैं। वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि मानवीय गतिविधियों से सन् १६०० से अब तक लगभग ५३३ जन्तु एवं ३८४ पादप जातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं और यही क्रम रहा तो शेष प्रजातियाँ भी विलुप्त होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि यदि यही क्रम रहा तो आगामी २० से ३० वर्षों में वनस्पतियों एवं जीवों की दस लाख से अधिक जातियाँ धरती से विलुप्त हो जायेंगी।
यदि वनस्पतियों के उपयोग को हम व्यावहारिक स्तर पर देखें तो पेड़ मनुष्यों द्वारा दूषित व निष्काषित वायु कार्बन डाई ऑक्साइड आदि गैसों को आहार रूप में ग्रहण कर ऑक्सीजन के रूप में उसे छोड़ता है, इसके अतिरिक्त उसकी जड़ें भूमिक्षरण को रोकती हैं, वायु की गति में अवरोध पैदा करके उन्हें बरसने पर मजबूर करती हैं। लेकिन मनुष्य जिसे विवेकशील प्राणी कहा जाता है अपने विवेक का दुरुपयोग करता है । मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो जानते हुए भी स्वार्थवश अपने हितैषी को भी नहीं छोड़ता है।
हमारी चिकित्सा पद्धति में ७५% से अधिक औषधियाँ वृक्षों, वनस्पतियों के 'आधार पर बनती हैं। लेकिन आज विकास के नाम पर वन सम्पदा का जो दोहन किया जा रहा है उसने एक विभीषिका का रूप धारण कर लिया है। यदि इसे अभी नहीं रोका गया तो विश्व को सर्वनाश की कगार पर पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता। अब प्रश्न उठता है कि पर्यावरण प्रदूषित होता कैसे है? इसका स्पष्ट उत्तर है हमारे दोषपूर्ण रहन-सहन से । वस्तुतः प्रकृति और मानव एक-दूसरे के पूरक हैं। एक-दूसरे के अभाव में किसी की भी कल्पना नहीं की जा सकती है। मानव का कोई भी पक्ष पर्यावरण से पृथक् करके नहीं देखा जा सकता है। हाँ, थोड़ी देर के लिए मानव के बिना पर्यावरण की कल्पना की जा सकती है।
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