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________________ ६२ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८ 'प्रकृते: संस्कृतायास्तु विकृतिः प्राकृति मता। 'प्रकृतिः संस्कृतं तत्र भवं प्राकृतमुच्यते।' 'प्रकृतेरागतं प्राकृतम्' व्याख्यानुसार 'प्रकृत' (संस्कृत) का विकृत भाषास्वरूप ही प्राकृत कहलाया। तत्कालीन संस्कृत नाटकों में नायक का शिष्टजनों के अतिरिक्त स्त्री आदि सामान्य किंवा नीच (अधम) पात्रों की भाषा भी प्राकृत होनी चाहिए। 'नाट्यशास्त्र' का यह प्रावधन द्रष्टव्य है शौरसेनी समाश्रित्य भाषां काव्यं योजयेत।। शकाराभीरचण्डाल-शवरद्रमिलान्ध्रजाः । हीना वनेचराणां च विभाषा नाटके स्मृता ।। उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह सप्रमाण कहा जा सकता है कि प्राकृत भाषाओं का मूल उत्स संस्कृत ही है। प्राकृत भाषा, लोकभाषा के रूप में स्थापित हुई लेकिन उसे जानने के लिए आज केवल उसका साहित्यिक स्वरूप ही उपलब्ध है। शौरसेनी प्राकृत संस्कृत नाटकों में प्रायः प्रयुक्त दिखती है। संयोगात्मकता, सरलता एवं संक्षिप्तता के कारण भगवान् महावीर ने इसे अपनाया था। महावीर का काल छठी शताब्दी ई० पू० माना गया है। उनके उपदिष्ट वचन प्राकृत भाषा में संकलित हैं। भास के तेरह रूपक उपलब्ध है, जिनमें पाँच एकाङ्की, एक समवकार, पाँच नाटक और दो प्रकरण की कोटि में आते हैं। इनमें प्राकृत भाषा का भूयशः प्रयोग किया गया है। भासकृत एकाङ्की रूपक -'उरुभङ्गम्', 'उत्सृष्टिकाङ्क के रूप में परिगणित है, क्योंकि इसमें करुण रस, नारी क्रन्दन तथा रणविजय एवं पराजय चर्चित है उत्सृष्टिकाङ्के प्रख्यातं वृत्तं बुद्धया प्रपञ्चयेत्। रसस्तु करुणः स्थायी नेतारः प्राकृता नराः।। भाणवत् सन्धिवृत्त्यकैर्युक्तः स्त्रीपरिदेवितैः। वाचा युद्धं विधातव्यं तथा जयपराजयौ।। १० इस एकाङ्की में कृष्ण के इङ्गित करने पर भीम गदा-प्रहार से ऊरु पर आघात कर, अन्यायी दुर्योधन को परास्त कर देते हैं, अतएव भीम प्रतिनायक की भूमिका में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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