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________________ श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००८ जैन साहित्य में श्रमिकों की दशा डॉ० रघुवर दयाल सिंह* मानव जीवन का अस्तित्व श्रम पर आधारित है। श्रम के वगैर हम सभ्यता की परिकल्पना तक नहीं कर सकते। प्राचीन काल से श्रम सदैव ही सस्ता और सहजता से उपलब्ध होने वाला उत्पादन का एक प्रमुख साधन रहा है। प्राचीन काल में भी आधुनिक काल की भाँति शारीरिक श्रमिकों की अत्यधिकता थी। श्रमिक कृषि और कुटीर उद्योग के क्षेत्र में अपना उल्लेखनीय योगदान देते थे। पाणिनि ने 'अष्टाध्यायी' में स्पष्ट वर्णन किया है कि शिल्प-विशेष न जानने वाले मात्र शारीरिक श्रम करने वाले साधारण अकुशल श्रमिक को कर्मकर और उसके पारिश्रमिक को 'भृत्ति' तथा शिल्पज्ञाता को 'शिल्पी' या 'कारि' कहा जाता था और उनके भृत्ति को 'वेतन' कहा जाता था। डॉ० कमल जैन के अनुसार खेत में काम करने वाले मजदूर आदि को 'अकुशल' मजदूर की श्रेणी में रखा जाता था तथा शिल्पकारों को कुशल एवं दक्ष श्रमिकों की कोटि में। इनके अतिरिक्त कुछ अधिकारी, आचार्य, अध्यक्ष, वैद्य आदि भी थे जिनकी गणना न तो शिल्पियों में की जाती थी और न श्रमिकों में। श्रमिकों को श्रम के बदले कुल उत्पादन का कुछ अंश ही प्राप्त होता था। ऐसा वर्णन मिलता है कि हल चलाने वाले श्रमिक को पारिश्रमिक के रूप में केवल भोजन ही दिया जाता था, वह भी उसकी कार्यक्षमता के आधार पर निर्धारित किया जाता था। कौटिल्य के अनुसार बटाई पर खेती करने वाले किसान को भागलग्ग कहा जाता था। वे शर्तानुसार कृषि कार्य करते थे और कुल उत्पादन का निर्धारित अंश अपने पास रखकर शेष भूपति को सौंप देते थे। जो कृषक राजकीय भूमि पर कार्य करते थे उन्हें उत्पादन का आधा भाग प्राप्त होता था। जो कृषक कृषि उपकरण एवं बीज राज्य की ओर से प्राप्त करते थे उन्हें उपज का चौथा या पाँचवाँ भाग प्राप्त होता था। भूमिहीन किसान, श्रमिक, कर्मेकर को भृत्ति देते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था कि भृत्ति से श्रमिकों के परिवारों का भरण-पोषण हो सके। श्रम के अनुपात में कम भृत्ति देने वाला पापी माना जाता था। कौटिल्य ने भी इस बात का * द्वारा- श्री एस० एन० सिंह, पी० ४, बी० ६, महामनापुरी, वाराणसी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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