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________________ ३६ : श्रमण, वर्ष ५९, अंक ४/अक्टूबर-दिसम्बर २००८ १९. अधिकांश कोश ग्रंथों में ऐसा ही उल्लेख हुआ है। इस प्रकार के उल्लेख परम्परा विरोधी होने से अप्रमाणिक हैं। इस विषयक अन्य उल्लेख भी शुद्ध नहीं हैं, अतः अमान्य हैं। २०. 'चक्रवर्ती का अर्थ है, जो समुद्र से परिवृत सर्वभूमि का अधिपति हो अर्थात् सार्वभौम शासक। २१. हलायुधकोश (हिन्दी समिति, लखनऊ) पृ०४९०. २२. विश्व हिन्दी कोश, खंड-१५, पृ० ७३०-३२१. २३. इस सम्बन्ध में संस्कृत-हिन्दी कोश (आप्टे), वाचस्पत्य कोश, दी संस्कृत इंग्लिश कोश (मोनियर मोनियर विलियम्स), हिन्दी राष्ट्रभाषा कोश (इंडियन प्रेस, प्रयाग), वृहत् हिन्दी कोश (ज्ञानमंडल, काशी); संक्षिप्त हिन्दी शब्दसागर (नागरी प्रचारिणी सभा, काशी) २४. या फिर मत्स्यपुराण की उक्त निरुक्ति बाद की आरोपित है। प्राचीन निरुक्ति के अनुसार भरत ही प्रजा का भरण-पोषण करने के कारण 'भरत' कहलाते थे। पुराण विमर्श (पं० बलदेव उपाध्याय), सप्तम परिच्छेद, चौखम्बा, वाराणसी। २५. मोहनजोदाड़ों की एक सील मूर्ति पर वे अपने पिता (ऋषभ) और अब वीतरागी साधु के समक्ष अंजलिबद्ध नतमस्तक बैठे हैं, ऐसा विचार (अनुमान) किया गया है। यहाँ भरत ऋषभदेव के अध्यात्म वैभव पर विमुग्ध होकर अपने पार्थिव वैभव को अकिंचन मानते हैं, ऐसा लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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