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________________ भरत : एक शब्द-यात्रा : ३३ (सिद्धेश्वर शास्त्री चित्राव) तथा अन्यान्य हिन्दी-कोशों में 'भरत' का अर्थोल्लेखान्तर्गत - दुष्यन्त-पुत्र, नाट्यशास्त्रकर्ता, नट आदि के साथ ही ऋषभ-पुत्र भरत को 'जड़भरत' के रूप में उल्लेखित किया गया है।२३ वैसे 'भरत' शब्द का जहाँ तक शाब्दिक अभिप्राय है, तो उसका अर्थ है जो संसार का सुचारू रूप से 'भरण-पोषण करता है, जैसा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी 'रामचरितमानस' में भरत के नामकरण के सम्बन्ध में लिखा है - 'विस्व भरन पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई।।' १/१९७/७ इसी संदर्भ में श्रीमद्भागवत का निम्न उद्धरण विशेष महत्त्वपूर्ण है - 'तस्माद् भवन्तो हृदयेन जाताः सर्वे महीयांसममुं सनाभम्। अक्लिष्ट बुद्धया भरतं भजध्वं शुश्रूषणं तद् भरणं प्रजानाम्।।' (५/५/२०) भगवान् ऋषभदेव के कथन के रूप में इसका तात्पर्य यह है कि 'यह मेरा ज्येष्ठ पुत्र प्रजाओं के भरण-पोषण रूप सेवाकार्य करने के कारण 'भरत' नाम से विख्यात होगा। इसी प्रकार 'मत्स्यपुराण' में लिखा है - भरणात् प्रजानाच्चैव मनुर्भरत उच्यते। निरुक्तवचनैश्चैव वर्ष तद् भारतं स्मृतम्।। ५०/५-६ उक्त कथन से प्रतीत होता है कि इस पुराण में 'मनु' को ही प्रजाओं के भरणरक्षण के कारण भरत संज्ञा से अभिहित होने से यह देश'भारत' कहलाया। यहाँ'भरत' से 'भारत' बना, यह तो प्रकट है, किन्तु ऋषभ-पुत्र-भरत का उल्लेख नहीं है, यहाँ 'मनु को 'भरत' कहा गया है, जिससे यह अन्य पुराणोल्लेख से विपरीत-सा जान पड़ता है, किन्तु ऐसा नहीं है। विचार करने पर ज्ञात होता है कि उक्त कथन भी सापेक्ष है। वस्तुतः उस काल में भारत के शासक को 'मनु' कहते थे और 'भरत' भी 'मनु' थे। इसीलिए 'मनु' एवं 'भरत' दोनों का एक साथ उल्लेख हुआ है। यहाँ आदिजनक (स्वयंभू) मनु सेतात्पर्य नहीं है। जैसा कि 'महापुराण से भी प्रकट है- नाभिरायको अंतिम मनुमाना गया है, किन्तु ऋषभदेव और उनके बाद भरत ने भी वही कार्य प्रतिभा,मनस्विता और सुदृढ़ता से सम्पन्न किया, अतः उन्हें भी- 'मनु' कहा गया। जिनसेनाचार्य के 'महापुराण में उल्लेख है - 'सोऽजीजनत्तं वृषभं महात्मा, सोऽप्यग्रसूनुंमनुमादि राजम्।।' (३/२३७) अर्थात् उन्होंने (नाभिराय) वृषभ - जैसे महात्मा को जन्म दिया और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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