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________________ पर्यावरण और वनस्पति : ७ सकती है, उनकी हिंसा मत करो। जीवन-यात्रा के लिए जिनका उपयोग अनिवार्य है, उनकी भी अनावश्यक हिंसा मत करो। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि मानव और वनस्पति का सम्बन्ध अत्यन्त ही संवेदनशील है। लेकिन इस संवेदनशील रिश्ते के नेपथ्य में आध्यात्मिक दृष्टिकोण प्रेरित है। तभी तो तुलसी, बड़, पीपल, केला आदि के पेड़ों की आज भी पूजा होती है और उन्हें जल अर्पण किया जाता है। वृक्षों की पूजा के पीछे भाव यही रहा है कि हम अपने घरों के आँगन में तथा घरों के बाहर अधिक से अधिक पेड़पौधे, फल-फूल केवल लगाएँ ही नहीं बल्कि उनकी परवरिश भी करें, उनकी सुरक्षा करें जिससे सम्पूर्ण वातावरण को सुगन्धित, शुद्ध और स्वास्थ्यवर्द्धक बनाया जा सके। वर्ड्सवर्थ ने कहा था- 'प्रकृति की ओर चलें।' वर्ड्सवर्थ की यह उक्ति उस समय जितनी प्रासंगिक नहीं रही होगी उससे कहीं ज्यादा प्रासंगिक आज है। आइए हम सब एक हरे-भरे समाज का निर्माण करें। यदि हमें स्वस्थ जीवन जीना है तो वृक्षों को अपना मित्र बनाना होगा। सन्दर्भ : १. अस्थाना, मधु, पर्यावरण : एक संक्षिप्त अध्ययन, प्रका०- मोतीलाल बनारसीदास, वाराणसी, प्रथम संस्करण, २००८, पृ०- ७५५ २. अथर्ववेद, १२/१/३५ ३. फलदानां तु वृक्षाणां छेदने जप्यमृक्छतम् ।। गुल्मवल्लीलतानां च पुष्पितानां च वीरुधाम् । मनुस्मृति, ११/१४३ ४. एवमुक्त्या मुनिवर: प्रस्थानमकरोत्तदा। सर्षिसङ्घः सककुत्स्थ आमन्त्र्य वनदेवताः। स्वस्ति वोऽस्तु गमिष्यामि सिद्धः सिद्धाश्रममनुत्तमम् । उत्तरे जाह्नवीतीरे हिमवन्तं शिलोच्चयम् । श्रीमद्वाल्मीकि रामायण (बालकाण्ड), ३१.१४-१५ ५. परीतं बहुभिर्वृक्षैः श्यामं सिद्धोपसेवितम् । तस्मै सीताञ्जलिं कृत्वा प्रयुञ्जीताशिषः शिवाः। समासाद्य तु तं वृक्षं वसेद्वातिक्रमेत वा। क्रोशमात्रं ततो गत्वा नीलं द्रक्ष्यथ काननम् । वही, (अयोध्याकाण्ड),५५, ६-७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525066
Book TitleSramana 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size9 MB
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