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________________ अणुराय-वसा तं चिय झायंती सुर-वरं निए हियए । कय-अणसणा वसुमई कालं काऊण उववन्ना।।२४७।। ईसाण-नामम्मि बिइज्ज-कप्पे चंदज्जुणे दिव्व-विमाणयम्मि। देवस्स चंदज्जुण-नामगस्स चंदप्पहा नाम पहाण-देवी।। २४८।। चतुर्भिः कलापकम्।। संस्कृत छाया : सापि खलु वसुमती-आर्या समितिगुप्तिषु सम्यग् उपयुक्ता । स्वाध्याय-ध्यान-युक्ता-उद्युक्ता विनयकरणे ।।२४५।। पूर्वशतसहस्राणि बहुनी कृत्वा प्रवर श्रामण्यम् । संलेखनया सम्यग् झूषित्वा निजकदेहन्तु ||२४६।। अनुरागवशात् तमेव ध्यायन्ति सुरवरं निजे हृदये | कृतानशना वसुमती कालं कृत्वोपपन्ना ||२४७।। ईशान-नाम्नि द्वितीय-कल्पे चन्द्रार्जुने दिव्यविमाने । देवस्य चन्द्रार्जुन-नामकस्य चन्द्रप्रभा नाम्नी प्रधानदेवी।।२४८।। गुजराती अर्थ :- हवे ते वसुमती साध्वी पण सारी रीते समिति, गुप्तिमा उपयोगवाली स्वाध्याय ध्यानमां युक्त, विनय करवामां तत्पर, घणा लाख पूर्व सम्यक टीते चारित्रनु श्रेष्ठ पालन करी ने तथा संलेखना द्वारा पोताना देहने सारी रीते सुकावीने क्षीण करीने अनुरागवशथी पोताना हृदयमां ते ज श्रेष्ठ देवनुं ध्यान करती करेला अनशनवाळी वसुमती काल करीने ईशान नामना बीजा कल्पमा चन्द्रार्जुन नामना दिव्यविमानमा चन्द्रार्जुन नामना देव नी चन्द्रप्रभा नामे मुख्य देवी रूपे उत्पन्न थई! हिन्दी अनुवाद :- (साथ में) अब वह वसुमती साध्वी भी अच्छी तरह से समितिगुप्ति में उपयोगवाली, स्वाध्याय, ध्यान में युक्त एवं विनयादि गुणों में तत्पर - बहुत लाख पूर्व अच्छी तरह से चारित्र का श्रेष्ठ पालन करके तथा संलेखना द्वारा अपने देह को क्षीण करके - अनुराग से हृदय में वही श्रेष्ठ देव का ध्यान करती हुई अनशनवाली समय आने पर - ईशान नाम के दूसरे कल्प में चन्द्रार्जुन नाम के दिव्य विमान में चन्द्रार्जुन नाम के देव की चन्द्रप्रभा नाम की मुख्य देवी बनी। गाहा : साहु-धणेसर-विरइय-सुबोह-गाहा-समूह-रम्माए । रागग्गि-दोस-विसहर-पसमण-जल-मंत- भूयाए ।।२४९।। 397 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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