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संस्कृत छाया :
विज्ञात-स्वरूपः स भार्या-पिता-माता-बन्धु-परिहीनः।
गुरूशोक-समापन्नः केवलीनेदृक्षं भणितः ।।२०२।। गुजराती अर्थ :- पोताना स्वरूपने जाणेलो, पत्नी-पिता-माता-बन्धु बगेरे थी रहित, अत्यंत शोक मग्न थयेला तेने त्यारे केवली भगवंते आ प्रमाणे कहयु। हिन्दी अनुवाद :- अपने स्वरूप को जानने वाला, पत्नी - पिता - माता - बन्धु आदि से विहीन बहुत शोक करने लगा तब केवली भगवंत ने इस प्रकार कहा -
गाहा:
मा भद्द! कुणसु सोयं एरिसओ चेव एस संसारो ।
इट्ठ-विओगा-ऽणि?-प्पओग-दुक्खेहिं संकिन्नो ।।२०३।। संस्कृत छाया :
मा भद्र! करु शोकमीदशश्चैव एष संसारः |
इष्ट-वियोगाऽनिष्टप्रयोग-दुःखैः सङ्कीर्णः ।।२०३।। . गुजराती अर्थ :- हे भद्र! तुं आवा प्रकारनो शोक न कर, निश्चे आ संसार प्रियजनना वियोग अने अप्रिय जनना संयोग रूपी दुःखोथी भरेलो ज होय छे! हिन्दी अनुवाद :- 'हे भद्र! तू इस प्रकार शोक मत कर, निश्चय ही यह संसार ऐसे प्रियजन के वियोग और अप्रियजन के संयोग रूपी दुःखों से भरापुरा है। गाहा :
एयम्मि वसंताणं जीवाणं विसय-मोहिय-मणाणं ।
संजोग-विप्पओगा अणंतसो भद्द ! जायंति ।। २०४।। संस्कृत छाया :
एतस्मिन् वसतां जीवानां विषयमोहितमनसाम् ।
संयोग-विप्रयोगानन्तशो भद्र! जायन्ते ।।२०४।। गुजराती अर्थ :- विषय थी मोहित मनवाळा जीवोने आ संसारमा रहेता हे भद्र! अनंता संयोग-वियोगो थया छे। हिन्दी अनुवाद : - हे भद्रा! विषय के मोह से मूर्च्छित मनवाले जीवों को इस संसार में रहते अनंतबार संयोग-वियोग होता है! गाहा :
परमत्थओ य दुक्खं जायइ निय-दुट्ठ-कम्मुणा जणियं । हवइ हु निमित्त-मित्तं सेसं पुण बज्झ-अत्थम्मि ।। २०५।।
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