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गाहा :
तं दट्टु जाय-तोसो काऊण पयाहिणं तु तिक्खुत्तो । पण मय केवल-चलणे उवविट्ठो उचिय- देसम्मि ।।१९९ ।।
संस्कृत छाया :
तं दृष्ट्वा
प्रणम्य
गुजराती अर्थ करीने, केवलीना चरणमां वंदन करीने उचित स्थाने बेठो ।
हिन्दी अनुवाद :- उनको देखकर हर्षित वह तीन बार प्रदक्षिणा कर के केवली के चरण में नमस्कार कर के उचित स्थान पर बैठा।
गाहा :
जाततोषः कृत्वा प्रदक्षिणां तु त्रिकृत्वः ।
केवलीचरणावुपविष्ट
उचितदेशे ।।१९९||
:- तेमने जोई ने हर्षित थयेलो ते त्रणवार प्रदक्षिणा
नाऊण य पत्थावं विहिय-पणामेण तेण संलत्तं ।
केण अहं अवहरिओ भयवं! किं वा इमं खित्तं ? ।। २०० ।। का वा एसा नयरी एवं पुट्टेण भगवया तस्स । धणवइणो पुव्वुतं सव्वंपि हु साहियं तइया । । २०१ । । संस्कृत छाया :
ज्ञात्वा च प्रस्तावं विहितप्रणामेन तेन संलप्तम् । केनाहमपहृतो भगवन् ! किं वेदं क्षेत्रम् || २०० ||
कावा एषा नगरी एवं पृष्टेन भगवता तस्य । धनपतेः पूर्वोक्तं सर्वमपि खलु कथितं तदा । । २०१ । । गुजराती अर्थ :- अवसर ने जाणीने प्रणाम करीने तेणे सारी रीते पूछयुं है । भगवन हुं कोना वड़े हरायो छु ? अथवा आ क्षेत्र कयुं छे? अथवा आ नगरी कइ छे? आ प्रमाणे पूछायेला भगवंते ने धनपति ने त्यारे पूर्वोक्त सघणो वृत्तांत कहयो ।
हिन्दी अनुवाद :- अवसर को जानकर किए हुए प्रणामवाला उसने पूछा- हे भगवान्! मेरा अपहरण किसने किया? अथवा यह क्षेत्र कौन-सा है ? अथवा यह नगरी कौन-सी है ? इस प्रकार पूछे गये भगवंत ने तब धनपति को पूर्वोक्त सभी बातें बताईं।
गाहा :
विन्नाय - सरूवो सो भज्जा - पिइ - माइ- बंधु-परिहीणो ।
गुरु- सोग- समावन्नो केवलिणा एरिसं भणिओ । । २०२ ।।
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