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संस्कृत छाया :
दृष्ट्वाऽस्या रूपं क्षुभित-मथ मानसं तु एतस्य।
कृत्वा धनपति-रूप-मवतीर्णोऽत्र गृहे 11१८९।। गुजराती अर्थ :- हवे एणीना रूप ने जोई ने आनु मन चलित थयुं तथा धनपतिना रूपने कटीने अहीं आ घरमां उतर्यो। हिन्दी अनुवाद :- अब इनके रूप को देखकर इसका मन क्षुभित हुआ, तथा वह धनपति के रूप को धारण कर यहाँ इस घर में उतरा। गाहा :
अवियाणिय-परमत्था भुत्ता अह वसुमई इमेणावि ।
सुरयम्मि रंजिय-मणो चिंतइ एवं महा-पावो ।।१९०।। संस्कृत छाया :
अविज्ञात-परमार्था भुक्ताऽथ वसुमती अनेनापि ।
सुरते रजितमनश्चिन्तयति एवं महापापः ||१९०।। गुजराती अर्थ :- रहस्यथी अजाणी एवी आ वसुमती आना वड़े पण भोगवाई। सुरतमां आसक्त मनवाळो आ पापी आ प्रमाणे विचारे छे। हिन्दी अनुवाद :- वास्तविक स्वरूप को नहीं जानने वाली वसमती का इसने सेवन किया, सूरत क्रीड़ा में आसक्त चित्तवाले इस पापी ने इस तरह सोचा। गाहा :
धणवइ-रूवेण ठिओ अन्नाओ एत्थ सयल-लोएण ।
एईए वर-तणूए समयं सेवामि सुरय-सुहं ।।१९१। संस्कृत छाया :
धनपतिरूपेण स्थितोऽज्ञातोऽत्र सकललोकेन।
एतया वरतन्वा समकं सेवे सुरतसुखम् ।।१९१।। गुजराती अर्थ :- बधा लोको वड़े नही जणायेलो, धनपतिना रूप बड़े अहीं रहेलो, हुं, आ श्रेष्ठ कन्या साथे रति सुख से। हिन्दी अनुवाद :- सकल लोक से अज्ञात मैं धनपति का रूप धरकर के यहीं रहकर इस सुन्दर कन्या के साथ रति सुख का सेवन करूं? गाहा :
विज्जाहरीहिं किंवा मह कज्जं किं व अन्न-जुवईहिं ।
सोहग्ग-निहाणए पत्ताए इमाए महिलाए? ।।१९२।। संस्कृत छाया :
विद्याधरीभिः किं वा मे काय? किं वाऽन्य युवतिभिः। सौभाग्य-निधानायां प्राप्तायाँ अस्यां महिलायाम् ||१९२||
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