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गाहा :
एमाइ बहु-विगप्पं परोप्परं जा जणो समुल्लवइ ।
ताव य पिय-सहि! धारिणि! निसुणसु जं तत्थ संजायं ।। १८३।। संस्कृत छाया :
एवमादि बहविकल्पं परस्परं यावज्जनः समुल्लपति।
तावच्च प्रियसखि! धारिणि! निःशृणु यत्तत्र सजातम।।१८३|| गुजराती अर्थ :- इत्यादि परस्पर लोको ज्यां सुधी घणा विकल्पो कहे छे व्यां सुधीमां हे प्रियसखि! धारिणि। जे थयुं ते तुं सांभळ! हिन्दी अनुवाद :- इत्यादि जब तक परस्पर लोग, विकल्प करते हैं तब तक जो कुछ हुआ वह हे धारिणी सखी! तू सुन! गाहा :- देव आगमन
केऊर-हार-अंगय-विरायमाणो मणोहर-सरीरो।
सहसा पयडीभूओ भासुर-दित्ती तहिं तियसो ।। १८४।। संस्कृत छाया :
केयूर-हार-अङ्गद-विराजमानो मनोहर-शरीरः।
सहसा प्रकटीभूतो भासुर दीप्तिस्तत्र त्रिदशः ।।१८४।। गुजराती अर्थ :- बाजुबंघ, हार, कड़ा विगेरे आभूषणों थी शोभतो सुन्दर शरीरवाळो, देदीप्यमान कान्तिवाळो, “देव” तत्काल त्यां प्रगट थयो। हिन्दी अनुवाद :- बाजुबंध, हार, कड़ा आदि आभूषणों से शोभित, सुंदर शरीरवाला, देदीप्यमान कान्तिवाला, देव तत्काल प्रगट हुआ। गाहा :
देवेण तेण भणियं निसुणह एयस्स वइयरं भद्दा!।
अवियाणिय-परमत्था करेह किं बहुविह-विगप्पे? ।। १८५।। संस्कृत छाया :
देवेन तेन भणितं निःशृणुत एतस्य व्यतिकरं भद्राः।
अविज्ञात-परमार्था कुरूथ किं बहुविध-विकल्पान् ।।१८५।। गुजराती अर्थ :- ते देवे कहयु! हे भद्र लोको! आनुं स्वरूप तमे सांभळो रहस्यने नहि जाणता तमे घणा प्रकारना विकल्पो केम करो छो? हिन्दी अनुवाद :- तथा उस देव ने कहा - हे भद्र लोगों! आप इसका स्वरूप सुनिए, रहस्य को नहीं जानते हुए आप व्यर्थ ही बहुत से विकल्प क्यों करते हैं? गाहा :- परपुरुष दृसांत
एसो हु पावकारी सुमंगलो नाम नहयरो आसि। साहिय-बहुविह-विज्जो विज्जाहर-नयर-सुपसिद्धो ।। १८६।।
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