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संस्कृत छाया :
अथान्यदा कदाचिदपि प्रवरे हर्म्यतले प्रसुप्तः ।
धनपतिवणिजः तया वसुमतीदयितया संयुक्तः ।।१५०।। गुजराती अर्थ :- हवे एक वखत क्यारेक ते वसुमती पत्नी साधे धनपति वेपारी महेलनी अगासीमां सूतो हतो। हिन्दी अनुवाद :- अब एक दिन कभी महल की छत पर धनपति वणिक् वसुमति पत्नी के साथ सोया था। गाहा :- वसुमतीनी शय्यामां परपुरुष
निम्मल-ससि-कर-उज्जोइयाए रयणीए पच्छिमे जामे ।
निद्दा-खए विबुद्धा मुद्धा सा वसुमई वरई ।।१५१।। संस्कृत छाया :
निर्मल-शशीकर उद्योतितायां (याः) रजन्यां (न्याः) पश्चिमे यामे।
निद्राक्षये विबुद्धा मुग्धा सा वसुमती वराकी ।।१५१।। गुजराती अर्थ :- निर्मल चन्द्रना किरणोथी प्रकाशित रात्रिमा (ना) पाछला प्रहरमां भोळी एवी ते बिचारी वसुमती ऊँघ उडवाथी जागी। हिन्दी अनुवाद :- निर्मल चन्द्र के किरणों से प्रकाशित रात्रि के पिछले प्रहर में वह मुग्धा वसुमती निद्रा क्षय होने से जग गई।
गाहा :
निय-सयणीय-पसुत्तं पर-पुरिसं पिक्खिऊण भय-भीया।
सा पवण-हया तणु-तरु-लयव्व अह कंपिया सहसा।।१५२।। संस्कृत छाया :
निजशयनीयप्रसुप्तं परपुरुषं प्रेक्ष्य भयभीता।
सा पवनहता तनुतरूलतेवाथ कम्पिता सहसा ।।१५२|| गुजराती अर्थ :- पोतानी पथारीमा परपुरुषने सूतेलो जोईने अत्यंत भयभीत थयेली ते पवन थी हणायेली वृक्षवेलडीनी जेम एकदम धुजवा लागी। हिन्दी अनुवाद :- अपनी शय्या में सोये हुए परपुरुष को देखकर वह अत्यंत डर गई, और वायु से आहत वृक्षलता की तरह सहसा कांपने लगी। गाहा :
चिंतइ सा मिय-नयणा कत्थ गओ मज्झ नियय-नाहो सो।
दुक्ख-पवेसम्मि गिहे एसो पुरिसो कह पविट्ठो? ।।१५३।। संस्कृत छाया :
चिन्तयति सा मृगनयना कुत्र गतो मे निजक नाथः सः | दुःख-प्रवेशे गृहे एष पुरुषः कथं प्रविष्टः? ||१५३।।
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