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________________ संस्कृत छाया : क्रमशो वर्धमानास्तरूणजनोन्मादकारकं रम्यम् । अथ ताः प्राप्तास्तिस्रोऽपि नव-यौवनारम्भम् ।।१४३।। गुजराती अर्थ :- क्रमे करीने वधती ते त्रणे तरुणजनने मोहित करावनार अने सुंदर, एवा नूतन यौवनना आरंभकाल ने पामी ! हिन्दी अनुवाद :- क्रमशः बढ़ती हुई वे तीनों तरुणजन को उन्माद करानेवाली एवं सुंदर ऐसे नूतन यौवन वय में प्रविष्ट हुईं। गाहा : कन्ना सुलोयणा सा परिणीया मेहलावइ - पुरीए । सागरदत्त-सुरणं सुबंधु - नामेण वणिएण ।। १४४ । । संस्कृत छाया : कन्या सुलोचना सा परिणीता मेखलावती पुर्याम् (पुर्याः वा) । सुबन्धु-नाम्ना सागरदत्तसुतेन वणिजा || १४४ ।। गुजराती अर्थ :- ते सुलोचना कन्या मेखलावती नगरीना (अथवा नगरीमां) सागरदत्तना पुत्र सुबन्धु नामना वणिक् पुत्र साथै परणी । हिन्दी अनुवाद :- उस सुलोचना कन्या की मेखलावती पुरी (अथवा पुरी के) सागरदत्त के पुत्र सुबन्धु नाम के वणिक् पुत्र के साथ लग्न हुआ। गाहा : विजयवई - नयरीए सुएण धणभूइ- सत्थवाहस्स । धणवाहण - नाणं विवाहियाऽणंगवइ- कन्ना ।। १४५ ।। संस्कृत छाया : विजयवती - नगर्यां (र्याः वा) सुतेन धनभूति-सार्थवाहस्य । धनवाहन - नाम्ना विवाहिताऽनङ्गवती कन्या ।। १४५ ।। गुजराती अर्थ :- विजयवती नगरीना ( अथवा नगरीना ) धनभूति सार्थवाहना पुत्र धनवाहन साथै अनंगवती कन्यामां लग्न थया । हिन्दी अनुवाद :विजयवती नगरी में (अथवा नगरी के ) धनभूति सार्थवाह के पुत्र धनवाहन के साथ अनंगवती कन्या का विवाह हुआ। गाहा :- पसुमतीना धनपति साथे विवाह सावि हु वसुमइ - कन्ना नयरीए मेहलावईए ओ । धणवइणा परिणीया तणएण समुद्ददत्तस्स ।। १४६ ।। संस्कृत छाया : सापि खलु वसुमती - कन्या नगयाँ (र्याःवा) मेखलावत्यां (त्याःवा) तु । धनपतिना परिणीता तनयेन समुद्रदत्तस्य ।। १४६।। Jain Education International 365 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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