SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाहा: पंच-पयारे विसए तीए समं तस्स अणुहवंतस्स। जाओ पहाण-पुत्तो वसुदत्तो नाम सुपसिद्धो।।१४०।। संस्कृत छाया : पञ्चप्रकारान् विषयान् तया समं तस्यानुभवतः । जातः प्रधानपुत्रो वसुदत्तो नाम सुप्रसिद्धः ।।१४०।। गुजराती अर्थ :- तेणीनी साथे पांच प्रकारना विषयोनो अनुभव करता तेने सुप्रसिद्ध एवो वसुदन्त नामनो मोटो पुत्र थयो! हिन्दी अनुवाद :- उनके साथ पाँचों प्रकारों के विषयों का अनुभव करते हुए उसे सुप्रसिद्ध वसुदत्त नाम का ज्येष्ठ पुत्र हुआ। गाहा : तत्तो विणयवईए कमेण धूयाओ तिन्नि जायाओ। निज्जिय-सुरिंद-सुंदरि-रूवाइसएण कलियाओ ।।१४१।। संस्कृत छाया : ततो विनयवत्या क्रमेण दृहितरस्तिस्त्रः जाताः । निर्जित-सुरेन्द्रसुन्दरी-रूपातिशायेन कलिताः ||१४१।। गुजराती अर्थ :- त्यार पछी विनयवतीने क्रमे करीने सुरसुन्दरीओना रूप ने पण जीते तेवी त्रण पुत्रीओ जन्मी! हिन्दी अनुवाद :- बाद में विनयवती को क्रम से सुरसुन्दरिओं के रूप को भी परास्त करने वाले रूपवाली तीन पुत्रीयां जन्मीं। गाहा :- विनयंपलीनी त्रण पुत्रिओ जेट्ठा सुलोयणत्ति य बीया कन्ना अणंगवई-नामा । वसुवइ-नामा तइया ति-लोय-अच्छेरय-भूया।।१४२।। संस्कृत छाया : ज्येष्ठा सुलोचनेति च द्वितीया कन्याऽनङ्गवती नाम्नी । वसुमती-नाम्नी तृतीया त्रिलोकाश्चर्यभूताः।।१४२।। गुजराती अर्थ :- अणे लोकमां आश्चर्यभूत एवी मोटी सुलोचना, बीजी अनंगवती, तथा त्रीजी वसुमती नामनी पुत्री थई। हिन्दी अनुवाद :- तीनों लोक में आश्चर्यभूत ऐसी बड़ी पुत्री सुलोचना, दूसरी अनंगवती तथा तीसरी वसुमती नाम की पुत्री हुई। गाहा :- त्रीजी वसुमलनी युवावस्था कमसो वढेतीओ तरुण-जणुम्माय-कारयं रम्मं । अह ताओ पत्ताओ तिन्निवि नव-जोव्वणारंभं ।।१४३।। 364 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy