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________________ गाहा :- पुत्रिजन्म - पयंगुमंजरीनाम जम्म-दिणे मह पिउणा सुय-जम्म-महूसवाओ अब्भहिओ। काराविओ सहरिसं महोच्छवो गरुय-नेहेण ।।११०।। संस्कृत छाया : जन्मदिने मे पित्राभ्यां सुतजन्ममहोत्सवादभ्यधिकः। कारापितः सहर्षं महोत्सवो गुरुकस्नेहेन ।।११०।। गुजराती अर्थ :- मारा जन्म दिवसे पुत्रजन्म महोत्सव करतां पण अधिक महोत्सव अतिस्नेह युक्त-पिताए हर्ष सहित कराव्यो। हिन्दी अनुवाद :- मेरे जन्म दिन पर पुत्र जन्म के महोत्सव से भी अधिक महोत्सव हर्ष सहित अतिस्नेह से पिताजी ने करवाया। गाहा : वत्ते य बारसाहे नामं तू पियंगुमंजरी मज्झ । विहियं कमेण अहयं देहेवचएण वड्डता ।।१११।। जणयाण कयाणंदा लालिज्जंता य धाइ-पणगेण । । पत्ता कुमारि-भावं कय-परियण-लोयणाणंदा ।।११२।। संस्कृत छाया : वृत्ते च द्वादशाहिन नाम त प्रियङ्गमञ्जरी मे। विहितं क्रमेणाहं देहोपचयेन वर्धमाना ।।१११।। जनकानां कृतानन्दा लाल्यमाना च धात्री-पञ्चकेन । प्राप्ता कुमारीभावं कृतपरिजन-लोचना-नन्दा ।।११२।। गुजराती अर्थ :- बार दिवस पूर्ण थये मारू नाम प्रियंगुमंजरी पाडयु, अने क्रमथी देहना अवयवो नी साधे वधती, माता-पिता ने आनन्द आपती, पांच धाव माताओ वड़े लालन पालन कराती, दास जनोनी आंखोंने आनंद आपती एवी हुँ कुमारीभाव ने पामी! हिन्दी अनुवाद :- बारह दिन पूर्ण होने पर मेरा नाम प्रियंगमंजरी रखा गया और क्रम से देह की वृद्धि के साथ बढ़ती तथा माता-पिता को आनन्द देती पांच धाय माताओं से पालित, दासजन वर्ग की प्रीतिपात्र ऐसी मैं कुमारी अवस्था में आयी। गाहा : जुवई-जण-जोग्गाओ नट्टाईया कलाओ सयलाओ। गहियाओ कमेण तओ पत्ता हं जोव्वणं पढमं ।। ११३।। संस्कृत छाया : युवतिजनयोग्या नाट्यादयः कलाः सकलाः। गृहीताः क्रमेण ततः प्राप्ताऽहं यौवनं प्रथमम् ।।११३।। Jain Education International 355 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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