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संस्कृत छाया :
ततो गत्वा मया सहर्षमालिङ्गितः स स्नेहेन ।
अहमपि तेन तत उपविष्टौ द्वावपि तत्रैव ।।७० ।।
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गुजराती अर्थ :- व्यारे में जईने हर्ष सहित स्नेहपूर्वक आलिंगन कर्यु अने तेणे पण मने कर्यु, व्यार पछी अमे बन्ने व्यां बेठा ।
हिन्दी अनुवाद :- तभी मैंने वहाँ जाकर हर्षयुक्त स्नेह से आलिंगन किया, और उसने भी मुझे किया, बाद में हम दोनो वहीं बैठे।
गाहा :
तत्तो य मए भणिओ नीहरिएणं तु मयण- गेहाओ ।
किं मित्त! तुमे विहियं विमोहिओ परियणो कह वा ? ।। ७१ । । संस्कृत छाया :
ततश्च
मया भणितो निःसृतेन तु मदनगृहाद् ।
किं मित्रम् ! त्वया विहितं विमोहितः परिजनः कथं वा ? | | ७१ | | गुजराती अर्थ :- अने त्यार पछी में पूछयु ! 'हे मित्र ! मदनगृहथी निकळेला तारा वड़े शुं करायुं, दासीजन केवी रीते मोहित करवामां आव्यो? | हिन्दी अनुवाद :- तब मैंने पूछा- हे मित्रवर! मदनगृह से निकलकर तूने क्या किया ? और दासीजन को कैसे मोहित किया!
गाहा :
कह व तुमं निच्छुट्टो का वा एसा मणोहरागारा ।
महिला, कत्थ व पत्ता, साहसु मह सव्वमेयंति ? ।। ७२ । । संस्कृत छाया :
कथं वा त्वं निर्मुक्तः का वा एषा मनोहराऽऽकारा ।
महिला, कुत्र वा प्राप्ता, कथय मह्यं सर्वमेतदिति । ।७२ ।। गुजराती अर्थ अथवा तुं केवी रीते मुक्त थयो ? अने आ मनोहराकृतिवाळी महिला कोण छे? क्यां थी प्राप्त थई ? आ बधु मने कहे । हिन्दी अनुवाद :- अथवा तेरी मुक्ति कैसे हुई ? और रूपवती यह महिला कौन है ? तुझे कहाँ से प्राप्त हुई ? यह सब मुझे बता ।
गाहा :- चित्रगतिद्वारा रचपृसांत कथन
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चित्तगई भाइ तओ निसुणसु भो चित्तवेग ! एग - मणो । काऊण कणगमाला - रूवमहं
संस्कृत छाया :
चित्रगति भणति ततो निःश्रुणु भोश्चित्रवेग ! एकमनः ! |
कनकमालारूपमहं
कृत्वा १. निच्छुट्टो = निर्मुक्त:
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ताव नीहरिओ ।। ७३ ।।
तावद् निस्सृतः ।। ७३ ।।
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