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________________ संस्कृत छाया : अभ्युपगतं हि मरणं नश्यतां तथापि तस्मात् खेचरात् । जल चर्वणोद्यतानां मा कथमपि खलु एति गुडकोऽपि ।।५८|| गुजराती अर्थ :- निश्चे मरणने तो स्वीकारेलु छे तो पण ते खेचरथी भागवु जोइए केम के जे पाणी ने पण चावतो होय, तेने गोळ पण एमने एम न उतरे ! हिन्दी अनुवाद :- मृत्यु तो निश्चित ही है फिर भी उस विद्याधर से भागना चाहिए, क्योंकि जो पानी को भी चबाता है वह गुड़ को यूं ही नहीं निगलेगा। गाहा :- युगलनं आकाशमागं प्रयाण ता सुयणु ! मुंच सोयं वच्चामो रयणसंचए ताव । कालोचियं च पच्छा दिट्टं दिट्ठ करिस्सामो ।। ५९ ।। संस्कृत छाया : तर्हि सुतनो ! मुञ्च शोकं व्रजावो रत्नसञ्चये तावद् । कालोचितं च पश्चाद् दृष्टं दृष्टं करिष्यावः ||५९ ।। गुजराती अर्थ :- हे सतुनो! आधी तु शोक ने छोड, हवे आपणे रत्नसंचय नगरी मां हमणा जईए अने पछी थी काल ने उचित जोइ जोड़ने करीशुं । हिन्दी अनुवाद :- हे सुतनो ! अतः तू शोक को छोड़, हम रत्नसंचय नगरी में अभी चलें, फिर बाद में उस समय जो उचित लगेगा वह करेंगे ! गाहा : तत्तो य तीए समयं नीहरिओ पणमिऊण रइ - नाहं । अह तीए कंठ - लग्गो उप्पइओ गयण- मग्गम्मि ।। ६० ।। संस्कृत छाया : ततश्च तया समकं निःसृतः प्रणम्य रतिनाथम् । अथ तस्याः कण्ठलग्न उत्पतितो गगनमार्गे ||६०|| गुजराती अर्थ :- त्यार पछी कामदेव ने नमस्कार करीने तेणीनी साथै निकळयो। अने तेणी ना कण्ठमां लपटाइने आकाश मार्गे प्रयाण कर्य। हिन्दी अनुवाद :- बाद में कामदेव को नमन करके उसके (कन्या के साथ निकला, और उसके गले में हाथ लिपटाकर गगन मार्ग द्वारा प्रयाण किया! गाहा : रागंधयार - मोहिय - नराण दठ्ठे व तारिसं चरियं । दूरं नासिय तिमिरो अह सहसा उग्गओ सूरो ।। ६१ ।। Jain Education International 339 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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