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संस्कृत छाया :- किञ्च
एषो अचिन्तितोऽपि खलु यथा जातस्सङ्गमः सह त्वया ।
तथैव मा कदापि खलवन्यदपि तु शोभनं भवेद् ।।५५।। गुजराती अर्थ :- केम के जेवी रीते अणधार्यो एवो पण ता साथे संगम थयो, तेवी ज रीते बीजु काई पण सुंदर हवे नहिं थाय। हिन्दी अनुवाद :- क्योंकि जिस तरह अचानक तुम्हारे, साथ संगम हुआ वैसा अन्य कुछ भी सुंदर नहीं हो सकता। गाहा :
कीरउ ताव उवाओ अहलो जइ होइ होऊ, को दोसो? ।
मंचय-वडियाण पुणो तहट्ठिया चेव भूमित्ति ।।५६।। संस्कृत छाया :
क्रियतां तावदुपायोऽफलो यदि भवति भवतु को दोषः? |
मञ्चपतितानां पुनस्तथा स्थितैव भूमिरिति ।।५६।। गुजराती अर्थ :- तो हवे कोई उपाय करवो जोइए, जो ते निष्फल थाय तो थवा दो, तेमां शुं दोष? कारण के मञ्च उपर थी पडेला नी छेवटनी स्थिति भूमि ज होय छे।। हिन्दी अनुवाद :- अत: कुछ भी उपाय करना चाहिए यदि वह निष्फल हए तो होने दो, उसमें क्या दोष है? क्योंकि मञ्च पर से गिरे हए की अंतिम स्थिति भूमि ही होती है। गाहा :
नहवाहण-खयरं तं दट्ठण मए इमं कयं सुयणु! ।
भवियव्वयाए दिटुं होज्जा जं किंचिमह उचियं ।।५७।। संस्कृत छाया :
नभोवाहनखेचरं तं दृष्टवा मयेदं कृतं सुतनो! ।
भवितव्यतया दृष्टं भवेत् यत् किञ्चिदथोचितम् ।। ५७।। गुजराती अर्थ :- हे सुन्दरी! ते नभोवाहन खेचरने जोईने में आ प्रमाणे कर्यु छे अने हवे! भवितव्यताए जे काई उचित जोयु होय ते थवा दो! हिन्दी अनुवाद :- हे सुन्दरी! उस नभोवाहन विद्याधर को देखकर मैंने यह किया है अब विधि ने जो उचित देखा है सो होने दो! गाहा :
अब्भुवगयं हि मरणं नासिज्जउ तहवि ताओ खयराओ।
जल-चव्वणुज्जयाणं मा कहवि हु एइ गुलओवि' ।।५८।। १- गुडकः
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