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________________ षष्ठ परिच्छेद की भूमिका श्रमण के सुधी पाठकों! 'सुरसुन्दरीचरियं' नामक सुन्दर कथाकाव्य जिसे हम धारावाहिक रूप में प्रकाशित कर रहे हैं, के पूर्व के पांच अध्यायों के प्रारम्भ में सारांश (परिचय) हमने अंग्रेजी में दिया था किन्त पाठकों की मांग को तथा यह दृष्टिगत रखते हुए कि टेक्स्ट हिन्दी में जा रहा है, प्रारम्भ का परिचय भी हिन्दी में जाना चाहिए, इस छठे अध्याय का सारांश हम हिन्दी में दे रहे हैं - सम्पादक गतांक से आगे ... पंचम अध्याय में हमने देखा कि चित्रगति, चित्रवेग से कनकमाला को पाने का उपाय बतलाते हुए कहता है कि दक्षिण क्षेत्र के विद्याधरों में प्रचलन है कि जिस लड़की का विवाह होने वाला होता है वह पहले एकान्त में कामदेव की पूजा करती है, पुन: उसका विवाह होता है। इसलिए वह निश्चय ही कामदेव मन्दिर में आयेगी। जब वह मन्दिर में आयेगी तो तुम कनकमाला को बाहर निकाल देना और मैं उसकी जगह उसके वेश में चला जाऊँगा। उसके बाद मैं तुमसे मिल लूंगा। चित्रवेग प्रस्ताव मान लेता है। यहाँ से आगे षष्ठ अध्याय प्रारम्भ होता है। हम दोनों कामदेव के मन्दिर गये और मनोवांछित फल की प्राप्ति हेतु प्रार्थना की। हम दोनों मन्दिर के पीछे छुप गए। तभी सुन्दर कनकमाला सखियों के साथ पालकी में चढ़कर मन्दिर में आई। उसने पूजा की सामग्री के साथ अकेले ही मंदिर में प्रवेश कर द्वार अंदर से बंद कर लिया और कामदेव से प्रार्थना करने लगी कि मुझे मेरे प्राणप्रिय से छुड़ाकर दूसरे के साथ क्यों जोड़ रहे हो। मैं अभी आपकी शरण में अपने प्राणों का त्याग करती हूँ। मैं जानती हूँ ऐसा मेरे पुण्य कर्मों के फल से हुआ है। मुझे लगता है कि नभोवाहन के किसी भक्त विद्याधर से मैं भ्रमित की गयी हूँ, ऐसा कहकर वह स्वयं को पाश में बाँधने लगी। मैंने तुरन्त उसके पास जाकर उसका पाश तोड़ दिया। और कहा कि हे सुंदरी! इन्द्र को पराजित करने वाला कामदेव तुम पर प्रसन्न हुआ है और तुम्हारे अनन्य साहस के कारण इसी जन्म में तुझे उस पुरुष से मिला दिया है। कनकमाला शरमा गयी। तभी चित्रगति भी उस स्थान पर आ गया। मैने कनकमाला से उसका परिचय कराया और बताया कि आत्मवध के लिए उद्यत मुझे इसी धीर पुरुष ने बचाया है तथा हमारे मिलन का रास्ता भी इसी ने दिखाया है। तुम तुरन्त अपने वस्त्राभूषण वगैरह इसे दे दो ताकि यह तुम्हारा रूप धारण कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525065
Book TitleSramana 2008 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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