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श्रमण, वर्ष ५९, अंक ३/जुलाई-सितम्बर २००८
प्रस्तुत ग्रन्थ वर्तमान स्वरूप से पूर्व प्रश्नोत्तर शैली में दो बार प्रकाशित हो चुका है। तृतीय संस्करण आचार्य शिवमुनि जी के कुशल सम्पादकत्व में प्रकाशित हुआ है। इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ की रचना हेतु लेखक साधुवाद के पात्र हैं। पुस्तक की साज-सज्जा सुन्दर है। जैन एवं जैनेतर सभी के लिए पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।
डॉ० सुधा जैन
वरिष्ठ प्राध्यापक
पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी। पुस्तक- मोक्ष मार्ग की पूर्णता, लेखक- यशपाल जैन, प्रकाशक- पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर; संस्करण- प्रथम, पृष्ठ- २१३, मूल्य- १२ रुपये।
जैन धर्म-दर्शन की चरम परिणति मोक्षदायिनी है। मनुष्य की स्वाभाविक गति भी सुख की ओर ही होती है, कार्मिक स्वभाविकता और ऊर्ध्व गति के कारण वह लोक शिखर पर विराजता है, जहाँ पर वह अनन्त काल तक अनन्त अतीन्द्रिय सुखों का भोग करते हुए अपने जन्म-मरण के चक्रकार आवर्तन से दूर रहता है। सम्यक्दर्शन, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक्-चारित्र की त्रिपुटी ही मोक्ष मार्ग है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में जैन दर्शन में वर्णित द्रव्य, गुण, पर्याय, कर्म की अवधारणा का स्पष्ट विवेचन करता है, वहीं प्रश्नोत्तरी के माध्यम से इसमें अन्तर्निहित वैचारिक विवादों का सामन्जस्यपूर्ण निराकरण भी करता है। शुद्ध रत्नत्रय की साधना से अष्ट कर्मों की आत्यन्तिक निवृत्ति द्रव्यमोक्ष है और रागादि भावों की निवृत्ति भावमोक्ष है। बन्ध हेतुओं (मिथ्यात्व व कषाय आदि) के अभाव और निर्जरा से सब कर्मों का क्षय होना ही वास्तविक क्षय है तथा आत्मा और बन्धन को अलग-अलग कर देना ही मोक्ष है। विद्वान् लेखक का प्रयास सरल से सरलतम व्याख्या की ओर है जहाँ मानव मन सहजता से आत्मसात कर जैन धर्म की मार्मिकता का सान्निध्य प्राप्त कर लेता है।
पुस्तक का द्वितीय खण्ड सम्यक्-दर्शन, सम्यक्-ज्ञान एवं सम्यक्-चारित्र को समर्पित है। परिणामों में स्थिरता, उत्तम भावनाएँ, जिनायतन आदि धर्म क्षेत्रों में रमण तथा शंकादि दोषों से रहित होकर सम्यक्-दर्शन को शुद्ध बनाया जा सकता है। प्रशम, संवेग, आस्तिक्य एवं अनुकम्पा- ये चार सम्यक्-दर्शन के गुण हैं और इनके माध्यम से सम्यक्-दर्शन तक पहुँच जा सकता है। सम्यक्-दर्शन, ज्ञान और चारित्र ही वह माध्यम है जो उपयोग की शुद्धता होने से जीव बन्धन के कारणों को नष्ट कर
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