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________________ ध्यानशतक : एक परिचय : ३९ आदि। इसी प्रकार अपने योग सम्बन्धी एक ग्रन्थ का नाम भी उन्होंने 'योगशतक' दिया है, अतः प्रस्तुत ग्रन्थ का 'ध्यानशतक' नाम ग्रन्थकार के द्वारा न दिया जाकर ग्रन्थ के टीकाकार हरिभद्र के द्वारा ही दिया गया है, ग्रन्थकार द्वारा दिया गया नाम तो 'झाणज्झयण' ही है, अत: दो नामों के होने पर भी ग्रन्थ और ग्रन्थकार के विषय में किसी प्रकार की भ्रान्ति की कल्पना नहीं करनी चाहिए। ग्रन्थ के कर्ता- जहाँ तक प्रस्तुत ग्रन्थ के कर्ता का प्रश्न है, परम्परागत दृष्टि से उसके कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण माने जाते हैं। इतना ही नहीं इसके सम्बन्ध में एक प्रमाण यह दिया जाता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ के कुछ संस्करण में इसकी १०६वीं गाथा में ग्रन्थ की गाथा संख्या का निर्देश करते हुए उसके कर्ता के रूप में 'जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण' का स्पष्ट उल्लेख हुआ है। पंचत्तरेण गाहा सएण झाणस्स जं समक्खायं। जिनभद्दखमासमणेहिं कम्मविसोहीकरणं जइणो।। प्रस्तुत गाथा में एक सामासिक पद 'कम्मविसोहीकरणं' है। किन्तु जहाँ तक मेरा ज्ञान है प्रस्तुत गाथा में 'कम्मविसोहीकरणं' यह सामासिक पद जिनभद्रगणि का विशेषण तो नहीं हो सकता, क्योंकि यहाँ इस सामासिक पद में प्रथमा या द्वितीया विभक्ति है जबकि जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण में तृतीया बहुवचन या पंचमी विभक्ति है। अत: 'कम्मविसोहीकरणं' यह या तो जिनभद्रगणिकृत किसी अन्य ग्रन्थ का नाम हो सकता है या फिर प्रस्तुत 'झाणज्झयण' को ही कर्मविशुद्धिकारक कहा गया है। हमारी दृष्टि में यही विकल्प समुचित है, क्योंकि ध्यान तप का ही एक प्रकार है और जैन दर्शन में तप को कर्म-विशुद्धि या कर्मनिर्जरा का हेतु माना जाता है। पुनः ध्यान में शुक्लध्यान ही ऐसी अवस्था है जिसके चतुर्थ चरण में सर्व कर्मों का क्षय हो जाता है। अत: 'कम्मविसोहीकरण' इस 'झाणज्झयणं' नामक ग्रन्थ का ही विशेषण है। अतः इस समस्त पद को इस रूप में लेना चाहिए- 'कम्मविसोहीकरणं झाणज्झयणं'। मेरी दृष्टि में इस गाथा का अन्वय भी इस रूप में करना होगा जिनभद्दखमासमणेहिं गाहा पंचुत्तरेण सएण जइणो कम्मविसोहीकरणं झाणज्झयणं समक्खाय।। इसी गाथा के आधार पर 'विनयभक्ति सुन्दर चरण ग्रन्थमाला' द्वारा प्रकाशित संस्करण में 'जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण' को इसका कर्ता बताया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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