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________________ ध्यानशतक : एक परिचय श्रमण, वर्ष ५९, अंक २ अप्रैल-जून २००८ साधना और ध्यान जैन साधना वस्तुतः समत्वयोग की साधना है। समत्व की यह साधना ध्यान और कायोत्सर्ग के बिना संभव नहीं है। सामान्यतया व्यक्ति का ध्यान तो कहीं न कहीं केन्द्रित रहता है किन्तु जो ध्यान पर केन्द्रित होता है अथवा जिसका विषय बाह्य जगत् से सम्बन्धित तथ्य होता है, चाहे वह व्यक्ति हो या वस्तुएँ वह ध्यान वस्तुतः ध्यान नहीं है, क्योंकि वह हमारी चेतना को उद्वेलित करता है। उसमें अनुकूल के प्रति राग और प्रतिकूल के प्रति द्वेष का जन्म होता है । राग और द्वेष की वृत्तियाँ पुनः आवेगों को या कषायों को जन्म देती हैं। कषायों की उपस्थिति से चेतना का समत्व भंग हो जाता है और चित्त उद्वेलित बना रहता है । यही कारण है कि जैन आचार्यों ने आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान को ध्यान के रूप में वर्गीकृत करते हुए भी साधना की दृष्टि से उन्हें त्याज्य ही माना है। यद्यपि जैन आगम - साहित्य में और परवर्ती ग्रन्थों में इन दोनों ध्यानों के स्वरूप, लक्षण, विषय, आलम्बन, स्वामी (कर्ता) आदि की विस्तृत चर्चा हुई है, किन्तु उसका कारण यह है कि इन अशुभ ध्यानों का स्वरूप समझकर ही इनका निराकरण किया जा सकता है। अत: जैन परम्परा के ग्रन्थों में ध्यान की जो चर्चा हुई है उसमें शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार के ध्यानों की चर्चा मिलती है। आर्त्त और रौद्रध्यान अशुभ ध्यान हैं। उनमें प्राणी की स्वाभाविक रूप से प्रवृत्ति पाई जाती है, जबकि धर्मध्यान शुभध्यान है, वह साधना का प्रथम चरण है। ध्यान-साधना के क्षेत्र में अन्तिम ध्यान तो शुक्लध्यान ही माना गया है। यह शुभ और अशुभ से परे शुद्ध स्वरूप का ध्यान है। आर्त्त और रौद्रध्यान के विषय बाह्य होते हैं, जबकि धर्मध्यान और शुक्लध्यान के विषय पर वस्तु न होकर स्व-स्वरूप ही होते हैं। यद्यपि धर्मध्यान के परहित और करुणा से युक्त होने के कारण किसी दृष्टि से उसे पर से सम्बन्धित माना जा सकता है, किन्तु मूलतः वह आत्मनिष्ठ ही होता है। शुक्लध्यान शुद्ध ध्यान है उसका सम्बन्ध मात्र स्वरूपानुभूति से है । इसमें आत्मा सविकल्पदशा से निर्विकल्पदशा में स्थित होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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