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________________ ३० : श्रमण, वर्ष ५९, अंक २ / अप्रैल-जून २००८ भूमियों के स्थान पर भिन्न दस भूमियों की चर्चा हुई है- १. प्रमुदिता २. विमला ३. प्रभाकरी ४. अर्चिष्मती ५. सुदुर्जया ६. अभिमुक्ति ७. दुरंगमा ८. अचला ९. साधुमती और १०. धर्ममेधा। ___ ज्ञातव्य है कि हीनयान परम्परा से महायान परम्परा की ओर संक्रमण काल में लिखे गये महावस्तु नामक ग्रन्थ में भी दस भूमियों का उल्लेख हुआ है। यद्यपि ये दस भूमियाँ पूर्वोक्त दस भूमियों से भिन्न हैं, ये निम्न हैं१. दूरारोहा २. वर्द्धमान ३. पुष्पमण्डिता ४. रुचिरा ५. चित्तविस्तार ६. रूपमती ७. दुर्जया ८. जन्मनिदेश ९. यौवराज और १०. अभिषेक। इसी प्रकार आजीवक श्रमण परम्परा में भी आध्यात्मिक विकास की अवधारणा को लेकर आठ अवस्थाओं का उल्लेख मिलता है। ये आठ अवस्थाएँ हैं- १. मन्द २. क्रीड़ा ३. पदमीमांसा ४. ऋतुव्रत ५. शैक्ष्य ६. समण ७. जिन और ८. प्राज्ञ। हिन्दू परम्परा के प्रसिद्ध ग्रन्थ योगबाशिष्ठ में सात अज्ञान और सात ज्ञान की ऐसी १४ भूमिकाओं की चर्चा है। अज्ञानदशा की सात भूमिका निम्न हैं- १. बीज जाग्रत २. जाग्रत, ३. महाजाग्रत ४. जाग्रतस्वप्न ५. स्वप्न ६. स्वप्रजाग्रत और ७. सुषुप्ति। ज्ञानदशा की सात भूमिकाएँ निम्न मानी गई हैं- १. शुभेच्छा २. विचारणा ३. तनुमांसा ४. सत्वापत्ति ५. असंसक्ति ६. पदार्थाभावनी और ७. तुर्यग। योग दर्शन में आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से चित्त की ५ दशाओं का उल्लेख किया गया है- १. मूढ़ २. क्षिप्त ३. विक्षिप्त ४. एकाग्र और ५. निरुद्ध। इस प्रकार विभिन्न धर्म-दर्शनों में प्रतिपादित ये सभी अवस्थाएँ व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास की ही चर्चा करती हैं और यह बताती हैं कि व्यक्ति की चैतसिक एवं चारित्रिक विशुद्धि की स्थिति क्या है? जहाँ तक जैनधर्म-दर्शन का प्रश्न है, उसमें भी आध्यात्मिक विशुद्धि की अवस्थाओं को अनेक प्रकार से व्याख्यायित किया गया है। सर्वप्रथम एक स्थूल वर्गीकरण मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि के आधार पर किया जाता है, किन्तु इसके अतिरिक्त एक अन्य वर्गीकरण बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के रूप में भी हमें उपलब्ध होता है। साथ ही तीन अशुभ और तीन शुभ लेश्याओं के आधार पर भी व्यक्ति के आध्यात्मिक एवं नैतिक क्रमिक विकास का चित्रण किया गया है। उसके पश्चात् चार ध्यानों के आधार पर भी व्यक्ति की आध्यात्मिक विशुद्धि की स्थिति का अंकन किया गया है। ये ध्यान व्यक्ति की चित्तवृत्ति के सूचक हैं। आचार्य हरिभद्र ने आठ योगदृष्टियों की भी चर्चा की है, वे भी व्यक्ति के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525064
Book TitleSramana 2008 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2008
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size10 MB
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