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जैन दर्शन एवं श्री अरविन्द के दर्शन में चेतना का स्वरूप : एक
ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग में ज्ञान साकार है और दर्शन निराकार है। ज्ञान 'सविकल्पक है और दर्शन निर्विकल्पक है। उपयोग की सर्वप्रथम भूमिका दर्शन है जिसमें केवल सत्ता का भान होता है।" पहले दर्शन होता है फिर ज्ञान होता है इसलिए निराकार एवं निर्विकल्पक है तथा ज्ञान साकार और सविकल्पक होता है। न्यायवैशेषिक में चेतना को आत्मा का गुण बतलाया गया है। इस गुण का गुणी या आधार आत्मा है जिसमें यह चेतना नामक गुण समवाय सम्बन्ध से समवेत रहता है । किन्तु उनके यहां चेतना आत्मा का आगन्तुक गुण है तथा यह उत्पत्ति विनाशशील है, जैन दर्शन में चेतना जीव का आगन्तुक गुण न होकर अनिवार्य गुण हैं । कुन्दकुन्द 'प्रवचनसार' में लिखते हैं कि आत्मा ज्ञान या चैतन्य वाला नहीं बल्कि ज्ञान या चैतन्य ही आत्मा है। दोनों में कोई भेद नही है।' अतः चेतना जीव का स्वरूप लक्षण है।
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जैन दर्शन में चेतना को प्रथमतया दो भागों में विभक्त किया गया है - मुक्त एवं बद्ध। पुनश्च बद्ध जीव दो भागों में बंटा हुआ है - त्रस एवं स्थावर । त्रस जीवों के अन्तर्गत पंचज्ञानेन्द्रिय जीव (मनुष्य), चतुरिन्द्रिय जीव (मधुमक्खी), त्रीन्द्रिय जीव (चींटी), द्वीन्द्रिय जीव (केचुआ ) आते हैं, जबकि स्थावर जीवों में एकेन्द्रिय जीव आते हैं। इस प्रकार जैन दर्शन में चेतना का विस्तार मुक्त जीव से लेकर एकेन्द्रिय जीव तक है। पुद्गल अचेतन द्रव्य है।
जैन दर्शन के अनुसार जीव को कर्मों के आधार पर जैसा शरीर मिलता है वह अपने को उसी रूप में स्थित कर लेता है । इसीलिए उसे शरीर परिमाणी माना गया है। यद्यपि विवेक- क्षमता के आधार पर आत्मा को दो भागों में विभाजित किया गया हैसमनस्क और अमनस्क । समनस्क आत्माएँ वे हैं जिन्हें विवेक- क्षमता युक्त मन उपलब्ध है और अमनस्क आत्माएँ वे हैं जिन्हें ऐसा विवेक- क्षमता से युक्त मन उपलब्ध नहीं होता है।
जैविक आधार पर भी प्राणियों का विभाजन जैन दर्शन में देखा जाता है। जैन दर्शन में दस प्राण शक्तियाँ स्वीकार की गई हैं। स्थावर एकेन्द्रिय जीवों में चार शक्तियाँ होती हैं- स्पर्श - अनुभव शक्ति, शारीरिक शक्ति, जीवन शक्ति और श्वसन शक्ति । द्वीन्द्रिय जीवों में इन चार शक्तियों के अतिरिक्त स्वाद और वाणी की शक्ति होती है। त्रीन्द्रिय जीवों में इन छ शक्तियों के अतिरिक्त गन्ध ग्रहण करने की शक्ति निहित होती है। चतुरिन्द्रिय जीवों में उपर्युक्त सात शक्तियों के साथ देखने का सामर्थ्य भी होता है। पंचेन्द्रिय जीव समनस्क और अमनस्क दोनों प्रकार के होते हैं। लेकिन दोनों में अन्तर है। पंचेन्द्रिय अमनस्क जीवों में इन आठ शक्तियों के साथ-साथ श्रवण शक्ति भी होती है। इसी प्रकार पंचेन्द्रिय समनस्क जीवों में इनके अतिरिक्त मन: शक्ति भी होती है।
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