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जैन पोथियों में जैनेतर दृश्य : ५१
भले ही वैष्णव शाक्त सम्प्रदायों के चित्रित ग्रन्थ १५वीं शती के उत्तरार्ध से मिलते हैं, परन्तु लोक में ये बिम्ब पहले से रहे होंगे। पूर्वी भारत में तो १२वीं शती में ही वैष्णव सम्प्रदाय के चित्रित उद्धरण प्राप्त होते हैं। सन्दर्भ :
एस०एम० नवाब, मास्टर पीसेस ऑफ द कल्पसूत्र पेंटिंग्स, अहमदाबाद, १९५६, पृ० १-६, प्लेट ए जी वही, पृ० ३ वही, पृ०६ कार्ल खण्डालावाला एवं मोतीचन्द्र, न्यू डाक्यूमेण्टस ऑफ इण्डियन पेंटिंग : ए रिप्राइजल, बम्बई, १९६९, चित्र ८७ वही, प्लेट ५, चित्र ५६, ६८-८९, ८१; मोतीचन्द्र, जैन मिनियेचर पेंटिंग फ्राम वेस्टर्न इण्डिया, अहमदाबाद, १९४९, चित्र १०६, १३१ कार्ल खण्डालागाला एवं मोतीचन्द्र, उपर्युक्त, १९६९, चित्र ६८
वही, चित्र ६९ ८. वही, एमिप्लेट ६ बी, चित्र ८९
वही, चित्र ९१ १०. यू०पी० शाह, मोर डाक्यूमेण्ट्स ऑफ जैन पेंटिंग्स एण्ड गुजराती पेंटिग्स ऑफ
सिक्सटीन्थ एण्ड लेटर सेन्चुरीज, १९७६, पृ० १२-१३, चित्र ३०-३२ ११. मोतीचन्द्र, उपर्युक्त, १९४९, चित्र ७५ १२. वही, पृ० ४६ १३. यू०पी० शाह, उपर्युक्त, १९७६, चित्र ३५, १४. मोतीचन्द्र, उपर्युक्त, १९४९, चित्र १५४, १५९, १६० १५. वही, चित्र १००, १५५ आदि १६. वही, पृ० ४७, चित्र, १७६