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________________ श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००७ मध्ययुगीन संत-काव्य में जैन न्याय की निक्षेप-पद्धति साध्वी डॉ० अर्चना* 'निक्षेप' शब्द जैन दर्शन का पारिभाषिक व लाक्षणिक शब्द है। जैन दर्शन परम्परा में न्याय की अनेकान्त प्रणाली रही है। द्रव्य या प्रकृति के तत्त्वों के शोध और उसके प्रतिपादन में यह सतर्कता रखी गई है जिससे जैनों के दृष्टिकोण के सम्बन्ध में कोई भ्रान्ति न उत्पन्न हो सके। निक्षेप शब्द एवं अर्थ को समझने की एक पद्धति विशेष है। किस अवसर पर किस शब्द का क्या अर्थ करना और उस अर्थ के अनुसार कैसा व्यवहार करना, इस कला को निक्षेप कहा गया है। वक्ता के अभिप्राय को सरल करने की यह अद्भुत कला है। भाषा और भाव की संगति निक्षेप द्वारा की जाती है। इसका अपर न्यास भी है। परस्पर के समस्त व्यवहारों व हृदय के भावों को व्यक्त करने का मुख्य साधन भाषा है, भाषा का सहयोग और शब्द प्रयोग का माध्यम मनुष्य को स्वीकार करना पड़ता है। संसार में हजारों प्रकार की भाषाएं हैं, उन भाषाओं के शब्द हजारों ही प्रकार के हैं। प्रत्येक भाषा के शब्द अलग-अलग होते हैं। भाषा ज्ञान के लिए शब्द ज्ञान और शब्द ज्ञान के लिए भाषा ज्ञान का होना आवश्यक है। व्याकरण शास्त्रानुसार अवयवी के ज्ञान के लिए अवयव का ज्ञान आवश्यक होता है।। __संस्कृत व्याकरण के अनुसार नाम, आख्यात, उपसर्ग और निपात आदि शब्द अनेक प्रकार के होते हैं। घट, पट आदि नाम शब्द हैं। पठति, गच्छति आदि आख्यात शब्द हैं। प्रवप्रराआदि उपसर्ग और निपात शब्द हैं। निक्षेपका सम्बन्ध केवल वस्तुवाचक शब्द से रहता है। व्याकरण के अनुसार वस्तुवाचक शब्द नाम ही होता है। अत: वस्तु तत्त्व को शब्दों में रखने, उपस्थित करने अथवा वर्णन करने की चार शैलियां व उसके नाना भेद-प्रभेदों का वर्णन आगमों में हुआ है जिन्हें निक्षेप कहते हैं। महान दार्शनिक आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने 'सन्मतिसूत्र' में कहा है - .. 'नाम, स्थापना और द्रव्य - ये द्रव्यास्तिक नय के निक्षेप हैं। भाव पर्यायास्तिक नय। *जैन भवन, पोस्ट-बराड़ा (अम्बाला), हरियाणा-१३३२०१
SR No.525062
Book TitleSramana 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey, Vijay Kumar
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2007
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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